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________________ प्रस्तावना जोमनवार विवाह लगन के पश्चात् विशाल रूप में जीमनवार होता था । पूरै नमर) गांव को जीमनबार दी जाती थी। सीता के स्वयंबर के पश्चात् एक बहुत बड़ी जीमनवार की गयी थी। सोने के बालों में खाना, बोबी के कटोरे में दूध पीना उस समय साधारण बात थी। मिष्ठानों का विवरण पढ़ने योग्य है कोणा कोणी पर बरफी स्वेत, घेवर लाह परुस्या हैत । खुरमे मीरा पूरी धनी, बहुत सुवास सनोकी बनी ॥१९४१॥ घोल बडे व्यंजन बहु माप्ति, हरे जरद बहु गणे न भात । भात वाल अति प्रत सुवास. सिखरण का दौंना वरि पाति ॥ तामें जरा लायची सोंग, मेवा मेल्या तिहां मोहन भोग । मोठा मिरव जीरों का मिस्या, लग संघात तिहा चिल्यो ॥१६४३॥ जीमने के पश्चास पान, नौग, केशर, जावत्री दी जाती थी। विभीषण ने जब राम के स्वागत में विविध पक्वान्न बनाये थे लेकिन उनमें भात दाल दही दूष मादि की रसोई प्रमुख थी बाह पक्रवान पर ध्यंजन धने, मात दाल सामग्री मिले। कनकतबाई सोबन थाल, बैठा जिमैं सब भुपाल ॥३९२६॥ निरमल जल सौ भारी मरी, पीय भूपति माने रली । दूष दही जीमें सब भूष, षदास व्यंजन बरण अनूप ।।३३।। स्वप्न दर्शन और स्वप्न फल-- __ स्वप्न दर्शन भावी घटमा के सुचक होते हैं। तीर्थ कर की माता को जो सोलह स्वप्न पाते हैं उनसे माता के उबर से तीर्थ कर पुत्र जन्म के साथ उसके सुसरे लक्षण भी प्रकट होने लगते है। होय पुत्र फल मन मानन्द, जानह पूरनवासी चन्द्र । सुर नर इद करेंगे सेब, तीन लोक के वानव देव ||७७॥ भव सागर का तोडे जाल, धर्म सरीर धर्म प्रतिपाल । विद्याधर नपति पसुपतो, इनमें बहोत हावै रती ।।७८|| राजा श्रेणिक को पद्मपुराण के कथानक के प्रति प्राश्चर्य एवं जिज्ञासा स्वप्न में ही प्रतिभाषित हो गयी थी जिसका समाधान भगवान महावीर की दिव्यध्वनि द्वारा हो सका था (१२/१६-१७८)। मवेषी को भी सोलह स्वप्न पाये थे जिनका फल तीर्थकर ऋषभदेव के रूप में पुत्र उत्पन्न होना था। कैकेयी ने पुत्र जन्म के पूर्व तीन स्वप्न देखे थे-- प्रथम सिंघ गजी रव करे, हस्ती हम बहुत मन घरै । दूजे मंगल देख्या अली, सरोवर में वह करता रली ।।७१/१०।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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