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________________ मुनि सभाबंद एवं उनका पचपुराएर २४३ राम लक्षमा' इ ! मुणे में जा बोला मा ।। राम द्वारा विचार करना दख्यण दिम इक पर्वत ठाम । हाक श्रवण सुसा हर गांम ।।२४६०॥ सो प्रतष्य हम देख्या प्राजि । मनांछित का हुवा काज ॥ गिरवर पर कुण कर पुकार । ताका डर मानै संसार ।।२४६१॥ सीता जो तुम डरपो घणी । तुम भी जाहे जहां ए दुरणी ।। रामचंद्र सीता लक्षमण । परबत चदि देख है सब धन |॥२४६२।। रवण भई बन के सब जंत । हस्ती स्यंघ बोलें दुरदंत ।। स्याला सबद भयानक लग । राम लक्ष्मण उस बन में जग ।।२४६३।। बसन उतारि पहर कोपीन | धरे ध्यान ऊभा तप लीन ।। जैसे सोहैं कलस सुमेर । प्रेसे सोहत हैं तिण वेर ।।२४६४।। प्रबगरों का निकलना नीनांजन नगर की उरिणहार । अजगर निकले तिहां च्यार ।। दामनी जो निहानीवल । फ कारता अगानि पर जले ।।२४६५।। महा भयभीत करें चिघार । इनके हे ममकित आधार ।। बहुत चिंघारे विनषे भये । 'न्यवंत डर भय नहीं थए ।।२४६६।। च्या अजगर रूप धरि देव । राम लक्ष्मण की कीनी सेव ।। पूज चरण बजावं वीरण । नाचे गाव गीद नवीन ।१२४६७.। वेशभूसरण कुल मूषण मुनि पर उपसर्ग करना वा वन में देशभूराण मुनी । कुलभूसरण कर तपस्या घनी ।। राज्यस प्रांगा दिखावै नृत्य । वह अपने मन भम ना कृत्य ।।२४६ ।। उनकों चाहें तप से दाल । वह हैं मन च काया हसियार ।।। अंधकार घरग घटा बनाई । उपसर्ग दिया मुनिवगंत धाइ ॥२४६६।। प्रडिल्ल मुनिबर ग्यांन गंभीर चित्त प्रातम दिया. हृदय सुमरि नवकार ध्यान निर्मल किया ।। प्रारत सेंद्र निवार धरम सुकल गह्या, ऐसा सुभट मुनिराज कष्ट बहुला राहा ।।२५००। चौपई राम लापण का मुनि के पास जाना लक्षमण राम सौरग सब चल्या । बनावतं धनुष मंभाल्या भला ।। साथां ने क्यू देहै दुःख । वितर भाज्या उपज्यो सुख ॥२५०१॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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