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________________ मुनि मभाचंद एवं उनका पमपुराण २३३ भरत कहै इस बात समझाइ । सुरबीर व्रत पाल न्याह ।। कायर पाल किम चारित्र । पाल' दिष्या सकल पवित्र ।।२४४०।। जैन धरम दुर्लभ घरगा, पाल बड़े कुलीन ॥ कायर पाल केम तप, अग्यांनी मति हीण ।।२४४१क्षा प्रतिबीरज अति ही बली, करी धर्म सों प्रील ।। राज रिधि सब छोड करि, भज श्री मरिहंत ॥२४४२।। इति श्री पपपुराणे अतिवीरज विधान ३३ वां विधामक विजय और प्रतिवीर्यजुत, रामचंद्र के भक्त ।। पाया गज नंद नगर का. प्राट्या जस सहु ज़क्त ॥२४४३।। चौपाई विजय राजा का विचार विजय असफंदन करें विचार | अंसी वस्तु कहा संसार । राम लक्ष्मरण में दीजे भेट | अंसी कवरण वस्तु शुभ होत ।।२४॥४॥ रबि दा मात रितुमाला पुत्तरी । प्रति बीरज सुता रूप गुण भरी ।। लक्ष्मण कू दीनी सिंह बार । बहुत बिनय कोनी मनुहार ॥२४४५।। चस्या भरत फिर प्रजोध्या देस । मारग में मिल गयो नरेस ।। विजय भरतफेदन चरण कु नया । भरत ताकुटि कंक स्माइया ।।२४४६।। कंदर्षमा सुता बिजय सुदरी । भरत निमित्त दीनी घडी ।। प्रतिवीर्य को कठोर तपस्या मानगिर पर्वत पर प्राय । प्रतिनीरज बैठा मुनिराय ।।२४४७।। कर तपस्या मन बच काई । यान लहर उपज बह भाय ।। तप के तेज देही मैं जोति । मानुपुन्य शशि उधोत ॥२४४८।। भरत शत्रुधन विजय प्रसफेद । गए तिहाँ प्रतिवीर्य मुनींद ।। उतर सिंघासण कर प्रणाम । सह परिवार गया तिरण ठाम ॥२६॥ पर्वत मारग महा कठिन । चढगये नृपति बहुत जतन ॥ मुनि कूदेखि भयो पानंद । वंदे चरण कमल मुख कंद ।।२४५०। विनयवंत करि बयावृत्य । पन्य साष पाल जे परित्र ।। सुरणे परम सब पातिग गये । नमस्कार करि बहु विष नये ।।२४५१।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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