SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३४ ।। २३७४ ।। लक्षमण पृथ्वीधर नृप पास करें बधाई मन उल्लास || महासुख में थयो विहांण । और बजे आनंद नीमां अनंत || रव भव के पुत्र तें पायो सुखं वनमाला रहगी घणी देख्या लक्षमण कंत १२३.७५ ।। इति श्री पद्मपुराणे लक्षमण पटरानी लाभ विधानक · ३२ वां विधानक चौपर्ड प्रतीषीर्य राजा द्वारा प्रयोध्या पर श्राश्रमण श्री नंदनगर प्रतिवीरज राव वायगत दूत प्रभीषर करें आय 1 दिया पत्र राजा के हाथ । विमुष प्रधान पढी सहु वात ।। २३७६३ विजय साल वत्रचर भूप । वेगरथ सिंहरथ जम के रूप || श्रासह मंगल त छोर । हम गय रथ पासक नहीं थोर ।।२३७७॥ मिलेछ षंड का राजा बना। श्रार ॥ ये सब प्राय एको भए और बहुत आवेगा नए ॥२३७८ ॥ चिठी देख चलें नमकल । प्रजोध्या मारि चहे भूपाल || भरत सत्रुधन करें ऊपर दौड़ । दस क्षोहरणी दल हुवा इकठोर ||२३७६॥ रामचंद्र त दूत ने कहैं । श्रतिवीर्य क्यों उपद्रव च ॥ कहा भरत तुम किया बिगार | हमसे कहो बात निरधार ||२३८० ॥ लड़ाई के कारण बोले दून भरत के बैन प्रतिवीर्य बेटा सुख चैन 11 सहज विचार कियो मनमांहि । भरत भेट मुझ भेजे नाहि ||२३८१ ॥ सब राजा मानें है आरण भरत सत्रुघन करें न कारण ॥ गुरु द्वारा सन्देश पद्मपुराण सुरत बुध्य तिहां भेज्या दूत । श्रजोध्या मांहि जाय पहुंत ||२३८२|| भरत सत्रुघन ने कहो जाय । प्रतिवीर्य सेवा करो आय || देश लोड के जाब | भला चाहो तो मो संग ग्राम ।।२३६३ ।। कं 'तुम शत्रुघ्न का उत्तर 1 जैसे पड़धा अगन में तेल सोबत सिंघ जगाया हेल || कोपि सत्रुघ्न बोलं वाक्य । वाकी सेवा हम जो करें। सा कहा अपर जल घरं ॥ उन तो तो सिंघ जगायो । वह जीवत छूटे किए पायो । २२८५।। प्रतिवीयं लंगो कहा बराक || २१८४॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy