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पद्मपुराण
मनमें कल नहीं अहमेव । सुमरत चले जिनेसुर देव ।। २२७१।।
जिनवाणी निाचे धरें, दया करै षटकाय ।। दुरजन मकल बरणां नमैं, श्री जिन परम सहाय ।।२२७२।। पर उपगारी राम हरि, परदुख मंजन हार ॥ पर कारज सारा निमित्त, प्रगटघो जस संसार ।।२२७३।। इति श्री पपपुराणे वनकरण सिहोदर विधानक
२६ वा विधानक
चौपई लक्षमण और विद्याधर मिलन
रामचंद्र सौता तिसाया भया । नीर लेण कु लक्षमण गया ।। तहां सरोवर निरमल नीर । छाया रागम विहंगम तीर ।।२२७४।। नेत्र तसकर विधाघर भूप । विजयाई पति मणी अनुप ।। क्रीडा देखन पायो तिहाँ । वन लीला सव निरस्त्री जिहां 11२२७५।। देख्यो लक्ष्मण पेले पार । रूप कांति कर दिपै अपार ॥ बहुत लोक भेजे ता पास । मन में उपज्या अधिक हुलास ।।२२७६॥ सेवग प्राई कर नमस्कार । करै वीनती बारंबार ।। चलो प्रभु बुलाधै तुम य । तुम दरसन देख्या को चाव ।।२२७७॥ लक्षमण विद्याधर हिंग गयो । नेत्रतसकर प्रति मादर दियो । लक्षमण उठि बीनती करें। वैसाच्या सिंघासण परै ।।२२७८॥ पुछ माए तुम किण काज । कवण वस्तु बांछो तुम प्राज ।। लक्ष्मण वोले सुणों नरेस । प्राहार निमित्त पाए इण देस ।।२२७६।। रामचंद्र सीता जिण थान । मैं पहुंच्या पाणी कुत्रांन । नेत्रतसकर बोलिया तिह बार । सलोदन तेडिया रसोईदार ।।२२८०।। व्यजन भले संवारे भोग । हीरे पीले बहुत पयोग ।। अतर पकवान संवारे धरणे । उसम घी मीठा में बरणे ।।२२८१।। गम बुलाये तिहां नारद । सीता सहित अधिक पानंद ॥ नेत्र तसकर चरान नथा। बहुत प्रकार महोत्सव किया ।।२२८२।।