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________________ २० प्रस्तावना एक भांति व्रत पालौं सही, जे नारी मुझ इच्छे नहीं ताको सोल न खंडउ जाई, इहै वरत मुख बोलवं राई ।। १०६.३१ ।। रावण जीवन में सीता हरण जैसी एक हो गल्ती करता है लेकिन इस एक ही गल्ती ने उसकी सारी कोति धो डाली और वह सदा के लिए कलंकित बन गया । लेकिन हरण के उपरान्त भी वह उससे दूर से ही बात करता है। स्पर्श तक नहीं करता क्योकि स्पर्श करने से सतित्व भंग होने का डर है। सीता को वापिस करने में उसे अपयश का वर लगता है इसके अतिरिक्त बहु अपनी सामथ्य के सामने औरों को तुच्छ समझता है । उनकी सेना बहबट करें। मेरा बल है प्रगट तिहूं लोक, तुकाई चितवे मनसोक कहा राम है भूमिगोचरी, जिसका भय तू चित्त में घरी । राम है वांषि बंदि में ह । जे मे आणी सीता नारि, फेरस कैसे इणवार ।।३६४० ।। लेकिन राम के समक्ष रावण का पौरूष समाप्त हो जाता है । उसका चक्र उसके हाथ से छूट कर लक्ष्मण के हाथ चला जाता है और उसकी लीला रामप्त हो जाती है अनेक विद्यायें भी उसका साथ नहीं देती । ५. हनुमान हनुमान वानर वंशी विद्याधर है। उसके पिता पवनंजय एवं माता मंजना का चरित्र लोक में प्रसिद्ध है। हनुमान प्रारम्भ में ही वीरता के धनी है पहले बह रावण का साथ देते हैं लेकिन राम मिलन के पश्चात् वह रावण का विरोधी बन जाते है। हनुमान राम का सम्देश लेकर लंका में जाता है। सीता से भेंट करता है । राम के समाचार कहता हैं। वह पकड़ा जाता है और रावण के समक्ष उपस्थित होता है | लेकिन अपने विद्याल में मुक्त होकर लंका का दाह करता है । राम लंका पर आक्रमण करते हैं तो वह सेनापति के रूप में भगली पंक्ति में रहते हैं । लक्ष्मण के मूधित होने पर यह अयोध्या जाकर विशल्या को लाते हैं । जीवन के अन्त तक वह राम के साथ रहते हैं तथा अन्त में तपस्या करते हुए मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त करते हैं। हनुमान का जीवन जैन साहित्य में बहुत लोकप्रिय रहा है इसीलिए सभी भाषाओं में उनके जीवन के सम्बन्ध में कितनी ही कृतियां लिखी गयी हैं । पवमपुराण का सामाजिक जीवन ―― पद्मपुराण में देव विद्याधर, भूमिगांव, म्लेच्छ जाति के प्राणियों का वर्णन आता है और इन्हीं में से पुराण के प्रमुख पात्र बनते है : देव – देवगति के धारक देव स्वर्ग में रहने वाले होते है। कभी वे तीर्थंकरों के - पंच कल्याणकरों में आते हैं तो कभी युद्ध भूमि में दृष्टि करते हैं । यक्ष एवं पक्षिणी देव जाति में ही गिनी जाती है । देवों के विक्रिया ऋद्धि होती है जिससे वे अपना कुछ भी रूप बना सकते हैं ।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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