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________________ मुनि सभाचन्द एवं उनका पयपुराण २१५ कैकयी का वश रथ के पास जाना एवं प्रपने वर मांगमा प्रर्द्ध स्यंषासण दियो नरेस । हाथ जोडि बोले भवनेस ।। मोकु दर दोना तुम क्या किया । अब मोकूदीजे करि दया ।।२११७।। तुम सम दाता कोई नहीं 1 जुग जुग की तरहै तुम मही ।। गोल राय सुरणों फैकिया । अब हम चाहे दिष्या लिपा ।।२११८।। जो कटु बस्तु मली मो पासि । मांगि बेग त्यो पुरौं मास ॥ राणी नयाँ झरे बहू नीर 1 व्याप्या कंत बिछीहा पीर ॥२११६।। नीची देखें धरती खणं । बनी बेर पीछे मुख भणे ।। भरत लेगा कहत है जोग । मैं किम सहस्यों पुत्र विजोग ।।२१२॥ अब जो भरत ने द्यो राज । तो अब रहै हमारी लाज ।। दारम द्वारा विचार राजा दशरथ कर विचार | कठिन वस्तु तं मांगी नारि ॥२१२१11 रामचंद्र सुत महा पवित्र । लक्षमण मेरै महा विचित्र ।। भरत राज पाव किए हाथ । हारयो वचन त्रिया के हाथ ।।२१२२।। रामचन्द्र जे पाव राज । भरत कर दिक्ष्या का काज 11 पर कोयी पुत्र विजोग । मोकू बुरा कहैं सब लोग ॥२१२३॥ रामचंद्र हरि लियो बुलाय । सन विरतांत फहै समझाय || कैकेयी मैं कह्यो वर दैन । बल करि कियो राज सब सन २१२।। ओं मैं वाच कुवाच अब करू' । पृथ्वी मांहि अपजस सिर परू ।। भरत लेय जो दिल्या जाय । तो कैकयी मरे हलाहल खाय ।।२१२५॥ मोहोह घणो अपलोक । यो मुझ मषिक व्याप्यो सोक ।। भरत राज देहु संसार । रामचन्द्र बोले तिरण वार ॥२१२६।। मात पिता की माया सार । जाका वचरण कुंए सफे टार ।। निज मंदिर पनि देख भरत । दीक्षा की मन इच्छा परत ॥२१२७॥ कब सो पिता निकस घर बार । ताके लेस्यु संजम भार ।। दुलाया राय सभा के बीच । राम बचन ज्यों ममृत सींच ।।२१२। भरत को पामंत्रण प्रजोध्या का तुम भगतो राज । अब हम कर परम का काव ।। विरण भरत सुणी सुम सात । यो राम नक्षम है आरा २९२९॥ इन हजुर किम मेठों पाट 1 फस्या नै ताली मोनु हाछ ।1 सज्य विभूत परष मंबार । जारणों सह संसार असार ।।२१३०॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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