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पपपुराण
प्रणवारण जल कर रसोई । बहुत पाग ताकू नित होइ ।।।
मरि करि पहुंते नरक मझार । चउरासी लख भ्रम्या अपार ।।२०७४। बशरथ के पूर्व भाष
भ्रमत भ्रमत इंद्रकपुर नग्र । करें राज राजा जसोभद्र ।। धारणी त्रिया तासु पट घनी । घारण पुत्र सोभा अति बनी ।२०७५।। व्याही नयरण सूदरि नारि । पाया मुनिवर लेण पाहार ।। विधसुद्वारा पेपरण किया । ऊंचा पासण वैसा दिया ।। २०७६।। घरण धोय जल सीस चकाइ । वश्यावर्त किया बहु भाइ ।।। मास उपासी मुनिवर अती । सुध अाहार दिवो मुपती ॥२०७२।। अषय दान दियो मुनिवर नहीं । भाषिक पुनीतण दंपति कहा ।। समकित सुपालं अनुवर्त्त । देवसास्त्र कर गुरुभक्त ।।२०६८।। पुरण प्राव करि तज्या परान । क्षेत्र विदेह घातकी आन ।। भोग भूम दंपति तिहां पाई । दोनृ भए जुलिया प्राइ 11२०७६।। तीन पल्य की प्रायु प्रमाण | भुगति तीसरे स्वर्ग विमांश ।। उहां तं चए प्रथइ देस । नदघोप म्है तिहा मरेम 11९०८०।। वसुघा है तावी असनरी । नंदवरधन जनम् सुभ चरी ।। कोडि पुरव की भुगती पान । जसोधर पास सुण्यां घरम के भाव ।।२०८१॥ दिक्षा लही जतीश्वर पास । जसोपा मुनि नौकांतिक याम ! नंद बरधन पंचम सुरथान । भगत प्राव फुन नंया निदान ।। २.४८ २ ।। मेरु सुदरसन पछिम बोर । विजयाराध परवत की और ।। ससीपुर नग्र रत्नमाली भूप । विद्युलता राणी सु स्वरूप ।।२०५३।। सुरजय ताक भया सुपुत्र । विद्याधर बल भू संजुक्त ।। सिंघ नन बच लोचष राय । रत्नमाली चढे जुधकर भाय ।।२०६४।। दारुन युध दोउ षां भयो । रतनसाली न कोष उपनु भयो । प्रगनि बाण कर लिया संभारि । मारि मारि किये दुरजन ठार ||२०६५।। देव एक प्रायो तिरण ठाम । समझाया रत्नमाली नाम || जो मारंगा इतने लोग 1 तो होसी भव भव विजोग ।।२०८६।। में कोई एक जीवन हन ! साकों हुवे नरक फी गर्ने ।। भव पिछला देव निज कहें । राजा क्रोध छोडि इम कहै ।।२.८७॥ गधारी नगरी नृप भूत । उपमती नामा रोहित । हिस्या कर था घणी । इक दिन लबधि पुन्य की वणी ।।२०८८।।