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पपुराण
गांगर फोडे मिकसै परिणहार | गली गली में नावं गार। मात पिता भए कलि कांन । दिया निकाल कुपात्र हि जान ।।१७१६।। भूस्या प्यासा दूषित घरगां । असा ताहि कठिन दिन वण्यां ॥ मांग भीस्त्र उदर निठ भरै । इण विध गया राज गिर पुरै ।।१७१७।। कुसाय राय नगरी का धणी 1 ताके विद्या साला वणी ।। वस्वासुत ते गुरु प्रवीण । प्रावध विद्या सिखा लीन ॥१७१८।। कुबरु साथ शिष्य बहु जुरे । सीखें विद्या ते इण पर । तिहाँ एलते पहुंचा जाइ । दानसाला मां भोजन षाद ।।१७१६।। सीख विद्या रहै उन पास । वह विद्या सोबी उन पास ।। राजा पासि गमा इक बार । नृपति अग्रे कही पुकार ।।१५२० ।। भाया एक विदेसी भेष | उन विपाशाली सबसे ।। कुकर न लही विद्या होगा । परदेसी ते महाप्रवीण ।। १७२१।। राजा ने गुरु लिया खुलाय । सिष्य प्रतें गुरु कह समझाय ।। राजा देखत चलायो बारण । अंडे बडे छोडे जाणि ।। १७२२।। राज सभा गुरु पहचे जाय 1 गये वायूध साला की छांय ।। राजकुवर सर छोड़े गले । औरा का सर बांका चल ॥१७२६।। एल प्रदेशी धनुष कर गया । गुरु का वाकि सुध लह्मा ।। टेढे सर कू छोडत भया । राजा का संसय मिट गया ।।१७२४१३ गुरु परदेसी परतुष्ट मांन । कन्या देण कही तिरण जारिण । एल प्रदेशी ज्ञान चित किया । माहिन समान गुरु की धिया ।।१७२५।। एमई ब्याहु तो लागई दोष । किस ही अनम उह नहीं मोक्ष ।। अरब रात्रि तब भाग्या एल । प्रजोध्या नगरी प्राया तिह वेर १७२६।। दसरथ नप के प्राया पास । अपना गुण कीना परकास ।। राय दशरथ ने कन्या दई । इसकू तिहां सुख थिति भई ॥१७२७।। च्यारू' राजसुत तिहाँ मिल्या । विद्या गुण सीख तिहा भला ।। इति श्री पपपुराणे रामलक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न विना विधानकं ।।
२२ वो विधानक
चौपाई जनक मूप विदेही अस्त्री । निर्मग्र राज करै तिहं पुरी ।। चक्रध्वज पुर का इक घणी । मनसेरपी राशी तसु तरणी ।।१७२८।।