SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ पपुरास २० वो विधानक बौपई कोसिषर की तपस्या कीतिघर मुनिवर मनप धरै । मास उपास पारगा करें ।। म परीस्था वीस पर दोइ । दयाभाव युगलां पर होइ॥१५५५ बहत वप से तप किया । नगर प्रहार निमित्त अाइया ।। ट्वागपेषण करें न कोइ । गजा द्वारं ठाडा होइ ।।१५५६।। झरोखे बैठी सहदेवी नारि । पावत देख्या मुनिवर डार ।। देख साथ मन बहुत रिसाई : सामढधा पर पिचा: ए मुनिवर हैं बहुत बुरे । गज भौग सुख देख्था जर ।। महा दुःख मौं नाहिए राज । तिगान कहे नरक का राज ।।१५५८।। अपरणां घर खोवे व्है अती । पुत्र कलित्र की चित न रती ।। घर लजि भीख मांगना फिर । लाज' कारण बसतर परिहरै ।।१५५६।। घणां विशां खोचे घरबार । देह जलाय कर जिम छार ।। थोडं सब संसारी सुरन । छह रिता वे भुगतं दुःख ।। १५६०।। असी कुबुद्धि इनामें होइ । बुबै आप और घर खोइ ।। एक मास तरणा तजि पून । छोही समली राज विमूति ।।१५६१।। वालक की न दया चित धरी । असी इरिए सब कीनी बुरी ।। अब दो याहि दरस हि कुमार । तौ वारो भी ले जाहि गंवार ॥१५६२ । निज किकर बोल इम कह्या । राजमी पुर मा देखा जिहां ॥ तिनको मारि मारि परहा कर उ । इस उपदेस हिया मां घरउ ।।१५६३।। मुनिकर फिर गया वन माहि । कर तपस्या वासुर सांभ ।। मनमा कछु नहीं प्रांगण आग 1 जोति स्वरूप सौं लाया ध्यान ।।१५६४।। विप्र संन्यासी पांचो भेष । तिण की प्रस्तुति करें विशेष ।। ते गावं अजोध्या में घरों । तिगा पं कुमर कोक विष भगे ।।१५६५।। खोटे वेद रात दिन पड़े । जिनके सुण्यां नरक थिति बढे ।। प्रेसी विध प्रगट्यो मिथ्यातः । जैन धरम की कोनी घात ।।१५६६।। तब ते इहां मिथ्याती बसें । खोटे वेद कीये तिनों से ।। बसंतलता ये देख चरित्र । मंदिर माहि रुदन बह करत ।।१५६७।। १. रात्रि विम
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy