SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पापुरपण रतन चूलि खेघर तिह ठांह । रतननूला रागी का नाम ।। रतनचल का अपनो स्त्री के साथ आगमन अंजनी का दुख सुनि उपनी दया । हहै विलाप वावरण न किया ।।१२९८॥ इनका दुख करौं अब दूर । असे वन में ए कोई सूर ।। वाही बना देवता प्राः । एव म बंतर की अवधि जपार १६५! ई के गर्भ में है हनुवंत । महोच्छे जाके करें बहु भाति ।। महाबली अर चरम सरीर । साहसवत महा बलवीर ॥१२६६।। असे बालक तणां अवतार । याही भव पाव सिब सार । गंधर्व जाति के आप देव । मंगलचार करण को रोय ।।१२६।। सब परवत पर भई सूखास । महारमणीक सोभै चिहं पास 1। गावं गीत पर नाचे षड़ी । रतनचुल' चित अचरज धरी ।।१२६८1। अबही झदन होइ था दु'द । पलमै देख्या होन आनंद । भरे तलाब अर' पर्वत झरे । भूके रूाव भए सब हरे ।।१२६६।। छह रितु के लागे फल फूल । सीतल पवन मुख सम तुल्य ।। मुनिसुबत की जिन प्रतिमां घरी। गंधर्व देव सेव बह करी ।।१३००। संस्कृत में वे गावे गीत । कर नृत्य प्रति महा प्रवीण ।। देवांगना बजावें वोरण । करें' नृत्य अति महाप्रवीण ||१३०१।। पूजा करी अंजनी प्राय । तीन काल सुमर जिण राय ॥ भी घडी दही कुशुम समाई । वसंतमाला सब लई बुलाई ।।१३०२।। जन इसके सब समझे चिन्ह । सेज्यां पर स्वाई करी जतन ।। पुत्र जन्म भया पुत्र शशि के उच्चोत । तम घट गया उजाला होत ॥१६०३।। रवि कीसी सोभ छवि कांति । बालक सोभ अभी भांति ।। बदन देख रोत्र अंजनी । कहै बचन सुभ अंसी बनी ।।१३।। पुत्र जनम होता घर मांहि । तो मनमांन्या होत उछाह ।। जो होला पवनंजय गेह । पुत्र देखि करता अनि नेह ।।१३०५।। जनम समय देता बहु दांन । पीहर का करता सन्मान ।। अब वनमें ग्राई परदेस । कहा करू किससु' उपदेस ।।१३०।। देवांगना समझा ताहि । मह वालक मेट दुखदाह ।। पुण्यंत जीव जन्मीयो । देव पाय महोत्सव किया ॥१३३७।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy