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________________ १५२ पापुराण तिए अवसर धनवाहन राय । रामकरत सुख में दिन जाय ।। मगहर देवि भगो बैराग्य । राजविभुति • बहीं त्याग ।।१२६६।। लषमी तिलक मुनियर डिंग पाई । दिक्षा लई वयन मन काद ।। तेरह विष धारित्र सो ध्यान । वयावरत करौं उत्तम ग्यान ॥१२६७।। सोलहकारण दसलक्षण बरत । रतनत्रय पालत गुण धरत ।। बारह अनुप्रेक्षा चितप्रेषि । माईस परीस्या सहैं विशेष ।।१२६८॥ बारह विध तफ्सों मन ल्याइ । ब्राह्माभ्यंतर एक भाइ ॥ सब जिय प्राप समान जानि । धर्मोपदेस कर व्याख्यान ||१२६९।। प्रातमदरस ज्योति सी लगी । सास उसास ग्यान करि पगी ।। मास उपास पारणां कर । अंसा तप गरबा तन धरं ।।१२७०।। लांत स्वर्ग में अमर विमाण । देही ब्रांडि भया मुरयांन ।। वहां ते च तुझ. कूषि में प्राइ । पुन्पवंत बंचन सम काय ।।१२७१।। अब भव सुरिण अंजनी तगी, कहैं संषेप वांग ।। वचन लगे अमृत समां, वोल ग्यान प्रबान ।।१२७२।। चौपई विजयारध नगरी तिहा अगणे । सुक्छ भूप मब का दुन्न हग ।। ताकं घर पटराणी दोइ । सीलवती पतिवरता सोइ ॥१२७३।। कनकोबरी न लक्ष्मीवती । दोन्यु मोम गुण गुणमती ।। लक्ष्मीमती प्रतिमा जिरण पूजि ! अन्नपान प्रारोगै तुझ ॥१२७४।। कनकोदरो द्वारा जिन प्रतिमा को बोरो कनकोवरी लब प्रेमी कगे। प्रप्तिमा चोरी कार्ड में धरी ।। लक्ष्मीवती बरत तें उठी । जिनप्रतिभा नहीं पाई पुठी ।।१२७५।। लक्ष्मीमती मन व्यापी पीर । अतस्त्राई नहीं पी नी ।। श्रीमती अनिका तव प्राइ । लक्ष्मीमती देख मुरझाय ||१३७६।। तासौं अजिका कहे समझाय । प्रवर प्रतिमा पूजो जाय । वेग समान करि भोजन करो । भाव तुमारो पुरण सरो ॥१२७७11 जिण अग्यान तें प्रतिमा हरी । अपरणी यति षोटी तिण करी ।। जनम जनम नरकों दुख होइ । प्रतिमा जाणि चुराब कोइ ।।१२७६।। भव भव हृता जीव के रोग । सदा कुटंब में पर वियोग ।। फनकोदरी कंपी सुणि बात । प्रतिमा आणि दई ता हाथ ।।१२७६।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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