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________________ पपुराण बोले पचन सुणों हो स्त्री । अंसा भय तुम ना चित धरी ।। तीस मास लगि वर्ष न कोइ । फिर पात्रं भाग वतीन न होइ ॥११४॥ अंजनि बोली दो कर जोष्टि । तुम बिलंव मोहि लाग पोडि ।। जे तुम कहो कुव सौं बात । कोई न दोप नगं किण भांति ॥११८५।। अजनी सेती कह समझाय । सबसौं मुह मिल हुये हम जाय ।। तुमसौं विदा हुए थे नहीं । तातें प्राइ मिले हम सही ।।११८६।। अंजना को मुद्रिका देना जो तुम कच्छ मनमें भय करो। मुद्रिका मेरी तुम कर घरो ।। इह सहनाणी दिखाइयो नारि । हमकों सीष भायो इण बार ॥११८७।। पल्या पवनंजय और प्रहसित । यतु विर्माण चाल्या विहसित ।। पाकास गामनी विद्या संभारि । दोन्यू पहुं ता कटक मंझारि ॥११८८।। सोरठा पुन्य संजोग होय, मो साजिद सुख सनम है ॥ विषय बेल फल होय, तम अंसा बहु दुख सहै ।।११८६॥ इति श्री पद्मपुराणे पवनंजय अंजनी मिलाप विधामकं ।। सोलहवां विधानक चौपई अंजना द्वारा गर्भ धारण करना सुख में मास गये गुबीत । प्रगटत भई गरभ की रीत ।। पीत वदन कंचन सम जोति । दिन दिन उदर प्रति ऊंचा होत ॥११६०।। केतुमति द्वारा पूछताछ चलै चाल गयंवर की भोति । केतुमती जब सुणी रह वात ।। मंजनी पासि प्राइ पूछी सुरति । तेन कवरण करी रह करतूति ।।११६१।। सांचे वचन कहो मुझ प्राथ । देषज ताहि लगाऊं हाथ ।। उज्जल कुल को कालष घटी । असी चिता बास मैं बही ।।११९२३ अंजना द्वारा स्पष्टीकरण अंजनी बीनवं दोइ कर जोडि । मोकु कछुवन लाग पोडि । मानसरोवर परि तुम्हारे पूत । देश्या चकवी वियोग बहुत ॥११६३।। मेरी दया विचारी हिये । हात पाय रात सुख दिये । च्यार पहर मुझ मंदिर रहा । प्रात भये उठि मारग गया ॥१११४॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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