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________________ १४४ पपपुरास मानसरोवर उतरे जाय । सेना सकल रही तिह ठांय ।। देख सरोबर निरमल नीर । मंदिर देखे ताके तीर ।।११५३।। ऊंचे बेटा पवन कुमार । देख इत उस दृष्टि पसार ।। पाच सीतल पवन सुवास । पंषी सब दल बैंठिहु पास ॥११५४।। पवनंजय द्वारा पकवा कमी का वियोग देशाना हस आदि बह जलपर जाँव । सर विंग करें किलोन प्रतीत्र ।। वाई कुद जल भीतर पडं । तिहां रि प्रति क्रीडा करें ।।११५५ ।। चकवी चकना रयरा वियोग । व्याप्पा तब कांत का सोग ।। भाई जय देखें जन मांहि । ताकौं समझ अपणा नाह ।।११५६॥ निरखं झांई कर पुकार । कबहां जाय चई बुम डार ।। सोसल नीर अगन सम लगै । अस सब निस चकवी जग ।।११५७।। असा दुख पवनंजय देख । मनमें उपजी दया विशेष ॥ भजना से मिलने को या बाईस बरस मुझे ब्याहा भया । अंजना सुदरी ने दुख धया ।।११५८।। र हूं चल्पा जुष के काज । झुझि मई को पूरी लाज ।। मुझ वियोग अंजना मरं । विना वस जनम इह गिरं ।।११५६।। किरण विध जाय अंजनी सुमिनु । सोक वियोग बाकों सब दन्नौं ।। घर से विदा होय मैं चल्या । फेर न येन कहै कोई भला ॥११६०॥ प्रहसित मित्र सों पूछी बात । मंजनी दुख पाया बहु भाति ।। याकी चूकि तउथी का नांहि । ददा कही क्या लागे ताहि ॥११६१।। कवरण जसन देख अंजनी । मोकू कठिन प्राई यह बनी ।। सज्जन कुटंब लोग की कांरिग । दोन्यु कठिन वणी है प्राणि ।।११६२।। प्रहसित कहै चलिये प्रच्छन्न । जैसे कोई लष न दिल ।। एक सोच उपज्या इण वार । सेना में हंगी जो पुकार ॥११६३।। समाधान दल का तुम करो । ता पार्छ यहां से तुम टरी ।। मुगदराय सौं भाषी बात । हम समेद गिर जाय हैं जात ॥११६४।। इहां तुम सावधान बह रहौ । श्री जिन के दरसन हम लहाँ ।। बहुत हार फूलन के लिये । चंदन केशरि उत्तम फल नये ।।११६।। बहोत सौंज ले दोनु चले । करि पानंद हीए में खिले ।। प्रजना पवनंजय मिलन प्रजनी के मंदिर में गया । प्रहसित मित्र बाहर ही रमा ॥११६६।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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