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________________ मुनि नभाचंद एवं उनका पापुराण १४१ इतनो सुणि सब सैन हकार । चढ्या कोप करि पवन कुमार ।। कूज सेन्या रावसा ताणी बुलाय । दंतीपुर को घेरचा जाय ।।११११॥ बाजै मापु नाना भांति । रोम उठी सूरौं के गात ।।। प्रजनी कान पड़ी ए वास । सीस धुणे चितवै बहु मांति ।।१११२।। विधना कर्वण पाप मैं किया । मंगलबार समै दुख दीया ॥ खाय पछाड धरती पर पड़ी । ददा उपाव सेया बहु करी ॥१११३॥ बड़ी बार में भई संभालि । विभनारिणी कुदीनी माल ।। जन सब भाष्या पोटा बयण 1 सणे पवन देखे निज नंग ।।१११४।। में भबही मां सन्यास । जीवत जनम में भइ निरास ।। नगर माहि अति हुनासोर । व्याह बीच तब मांची रोर ॥१११५।! पवन नाम दुलह का सुण्यां । पवन समान प्राईया मनां ।। अंसी बाव बहै चिहुं ओर । मंसी याहि कुमरि में षोरि ॥१११६।। सुणी बात महेन्द्रसेन । प्रहलाद निकट पाया सिख दंन ।। हमत कहो चूक के परी । तुम प्रापणों मन असी धरी ।।१११७॥ हम तुम में थी पहली प्रीत । कैसे करी जुध की रीत । प्राज चाहिये रह्सानन्द 1 किह कारण तुम कीया अंध |११११८।। पवनंजय मंजमा विवाह महेन्द्रसेन के सुरिण वचन, मिटया कोष का भाव ।। बहुस्वा रहम रली भई, दुई कुल श्रधिको चाब ।।१११६।। चौपई कुबर के मन की बुटक ना आइ । संभा भांवर कीम छर भई ।। अंजनी का भाज्या मन दुख । सुफल जनम करि मान्या सुख ।।११२०॥ भए विदा वीत्या इक मास । जव पहुंचे अपने घर बास । मन सेती भूल नहीं बात । रौवं पुटक कुमरि दिन रात २१।। पवनंजय के मन की घुटक, कवहि न हो दुरि ॥ __ अंजना सुंदरि क्या करे, दीया कुमाया ऋरि ॥११२२॥ यौपई अंजना का सुश मंदिर न्यारा भजनी नै दीया । रहै अकेली रुपै हिया ।। अपणी निंदा बहुतै करै । भुगत्या बिना करम नही टरं ॥११२३।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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