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पपपुराण पुण्य प्रसाद जीत बह भई । पुण्य विभव चौगरपी थई ।। तात पुण्य करो मनल्याय । सुख संपति बाधे अधिकाइ ।।६१४।।
पहिस्ल पुण्य तणे संयोग देश बहुते जुडे ।
जीते भूप अनेक बोल ऊपर करे । इन्द्र नरेन्द्रह साधि सकल जय जय भई ।
जैन धरम परसाद असाता सब गई १९१५|| इति श्री पपपुराणे इन्त्र प्रभाव विषामकं ।।
१३ वा विषामक
चौपई महनार का रावण के पास जाना
इन्द्र को सब रोके रणवास । अक्षपानी तजि कर उपवास ॥ जयवंत कुंवर बहुत बिसलाय । नगर लोग चितवं बहु भाय ।।१६।। सहस्रार करिक मनुहार । समझाया सगला परिवार ।। अबहु रावण पासै जाउं । मेरा कहा मानगा राउ ।।६१७।। इन्द्रतणी में डार्ड बंदि । ज्यौं परियण में होय प्रानंद ।। सब परियण कौं धीरज दिया । लंकों तग पयाशा विया ॥११।। मंत्री सुषर लिये नप संग । रूपवंत सौमैं सब अंग ।। पहुं ते लंका समुद्र मझार । देखी स्वर्ग पूरी उमाहार ॥६१६।। सिंघ दुवार पहुँमा मूप । वणी पोल तिहा अधिक अनूप ॥ पीलिये खबर रावण सौ करी । मांहि बुलाया वाही घडी ॥६२०॥ राज्यसभा मोही नुप गया । रावण उठकर आदर किया ।
सिंघासण बैठाया राय । पुरुषा जारिग करी बहु भाय ।।६२१॥ इन्त्र को छोड़ने की प्रार्थना
सहस्रार राजस प्रति कहै । पुत्र वियोग मम हिरदा दहै । इन्द्र छोड्यो मने बहु होय । तुमारी कीरत कर सब कोइ ।।६२२।। तुम भाग्या मानेगा इन्द्र । कृपा करित छोडो अब बंदि । बोल. रावण प्रामा यही । नगर दुहार नित उठ सही ।।६२३॥