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पपपुराण
कुंभकरण तब कीन्ही दौर । सूरदीर दुई और ॥ इंद्रजीत मेघनाद तय धसे । घणे लोग जम मंदिर बसे11८८६।। सिषवाहनर कनक म सूर । तिनक जुध किया भरपूर ।। श्रीमाली माल्यवान का पूत । घाइ लड्या सेना संयुक्त 1 ८७।।
दुरजन दल ए परलय किया । रुधिर तरणा अलि नाला थया ॥ द्वारा युर
इन्द्रभूप प्राया चदि बली । अं अंस पुन संग सेन्यो भली पुत्र पिता मौं विनती करे । मेरा कह्या क्यों न उर घरं ।। मोकु प्राशा दीजे पाज । वेग संबारौं तुम्हारा काज ||८६ ।। रावण को बांध? जब माय । मोहि पराक्रम देखो राइ । कहै इंद्र पुत्र सों बात । तुम हो बालक कोमल गात ||८६० अब तेरे खेसण की बात । तुम सुस्स भुगतो इण संसार ।। बालक कीडा की है बयस । सुम बिण काम कवण इंह देस ।।८६१।। तेरा भरण केम देख नंगा | अंमें कहैं पुत्र सो बैन ।। जैवंत इन्द्र बोल करि जोडि । तुम पर बैठो निरभय और ||८६२| रावण पकडौं सेन्पा साज । ज्यो पकड तीतर नै बाज ।। मंसी विध रावण नैं गहुँ । पलमाही स्व सेन्या दहूं ।।८६३|| जयंत इन्द्र करि सुरिष पलांग । भले लिये जोधा बलयांन ।। श्रीमाली सुलडा बहूत । लगी गदा भू पड्या तुरंत ।।८६४) सेवकां पारा करि लिया उठाइ । सीतल पवन बीभनां बाय ।। चल्या कुंबर लिमे हथियार । हस्ती ऊपर भया असवार ।।८६५।। श्रीमाली उपर मारि तरवार । माथा छेद भया तिह बार ॥ सेन्यां विधल रावण की भई । इन्द्रजीत को इह सुध भई 11८६६॥ का परी ज्यां बरस मेह । परवत समान पड़ी मृत देह ।। सूर सुभट तिहां बहु कटे । पाले पांव न कोई हटे ।।८६७|| जयंत कुवर के लागा धाप । माया इन्द्र कोध के भाव ।। इतर रावण चढ़यां दससीस । सब हथियार गहै मुज बीस १८१८ सब सावंत लिये कर संग । दुरजन वल करबे को मंग ।। रावण कहै दिसायो इन्द्र । कोस दोय देख्या मुवचंद्र ||६||