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________________ १०२ चौकी बैठी घाटी घेर । कोई न असंकं सिंहं बेर ।। जलक्रीडा सरोवर बीच। पेस राणी माची की ||४६४ ॥ अंजलि मरि भरि नीर हिरा 1 राजा लीने कमल उषारि । मारे उने मनावें हारि ||५६५ || कोई रुठि रहे मुष मोरि । ताहि मनावं भूप बहोरि ।। विविध प्रकार की क्रीडा करी । गावें मंगल सब मिलि तिरी ॥५६६ ।। रावण द्वारा जिन पूछा अपने मन निरभय बरे । रावण पूजा ने चित घरे || सामग्री पूजा की सोज । निज यांनिक साजा करि चौन ।।५६७॥ भष्ट द्रव्य स पूजा करें। श्री जिनवाणी मुख उपरं ॥ जल धारा का इह विचार । त्रिया दोष मिट संसार || २६६|| वेसर चंदन जिरा ए दले । भय प्रताप मिटे संपए ॥ पहुप चढाव जिस प्रतिबिंब / सीलन टरें रहे गन थंभ ।। ५६६।। उज्वल अक्षत पंडित नहीं। इस विथ पूजा कीजे सही ॥ नेवल भाल चढाव परे । क्षुध्या श्रादि दोष हरे ।। ६०० ।। दीप चढा रतन सम्मान । निश्व पायें केवल ग्यांन ॥ धूप सुगंध निमित्त । आाठ करम जर जावें अंत ॥। ६०१ || पद्मपुराण फल जु चश्चार्य बिरस पद पास पावैं मोक्ष तरां भावास || विनयवत भारती करें। ऊछले जल रावण किंग परे ।। ६०२ ।। सा निडर इहां नहीं कोह || रावण के मन चिता होइ । उन कछु करी न मेरी कांणि जिनवर के डर करघा न जारि ||६०३ ।। प्रव देखउ हूँ हो तुम जाइ । बेगि बांधि प्ररिंग इस ठांइ ॥ गई बस तिहां पेले राय रखवाला वरजं मति नाम ।। ६०४ || सूर सुभट भीतर घरि गये । वाकु देखि अचंभित भए । तू इस तें हिव नीकलि मूहि । में तो भब पाया दुडि ।। ६०५ ।। तु प्रय चल रावण के पास पास जो चाहे जीवण की भास || और जो त मन रात्र भर्म | देख जु भव करू " है कर्म ॥ ६०६॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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