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निगति का विवाह
नयम विधानक चौपई
कोतपुर नगर हुतासन भूप । हरियल राणी महा स्वरूप ॥ प्रतिगति पुत्री तार्क उर भई । रूप लखन करि सोभै नई ||५६७ || चित्रांगद राजा के साहसपति पूत । साहसीक वहु गुग्ग संयुक्त || इक दिन दृष्टि पडी अतिगता । देखत बढी काम हम लता || १६८ ।।
जाय पिता से बिनती करी । हुतासन की व्याई पुत्तरी ॥ राजा ततक्षरण भेज्या दूत । लषी वीनती बचन बहुत ।। ५६६ ।। मेरा पुत्र बहुत गुणवंत । जाकेँ बल पौरष नहीं अंत ॥ प्रतिगति पुत्री तुम या को देहु । मेरा बचन मान प्रति लेहु ॥ ५७० ॥ अवर दूत भेज्या सुग्रीव । वानर वंसी प्रति उत्तम जीव || राजा सोच कर मन माहि । पुत्री समझि दीजिये काहि ।।५७१ ।।
मुनि चद्रस्वामी पं जाई । नमस्कार करि लग्यो पाइ ॥ मेरे मन संसय भयो भाइ । उभय दूत पठिए ई राइ ||५७२||
पपुराण
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कन्या किसकी संबंधिनी । अबधि विचार के भाषो मुनि ।। बोले मुनिवर ग्यांन बिचार सुग्रीव की हैं श्राव पार ।। ५७३।३ व के साथ विवाह
साहसगति की हैं अल्प श्राव । कन्या देहे सुग्रीव कुठे भाव ॥ राजा का संसय मिट गया । मंगलदार सुग्रीव सूदया || ५७४ || पंच सबद बाजे ति बार बांभरण पढें वेद भंकार | रहसरी सू भयो विवाह । दोउं कुल में बहुत उवा ||१७५ ||
भए बिदा किकंधपुर गया। दंपति करें भोग नित नया ॥ भया पुत्र इक गर्भ धनंग दूजे अंगद लहर तरंग ।। ५७६ ।।
महाबली है दोनू वीर । पराक्रमी अरु दिव्य सरीर ॥ साहसमति के हिरदे वाह । प्रतिगत सुग्रीव ले गया विवाह ।।५७७॥ ।
खलबल करिके बाकू हरू । मनबांछित सुख तासों करू ॥ जब लग प्रतिगति भेटू नाहि । तब लग रहि है मुझ मनाहि ||५७८ ||
हेमांचल पर्वत पर गया । विद्या हेत तपस्वी भया ।।
रावण साधे सकल नरेस | भांग मनाय किये वसि देस || ५७६
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