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________________ पापुराण मा के चित्त दया का भाव । ना कल हरष नहीं विसमाव ।। धाम उपदेस सुरण भवि लोक । मुनि सार्च निस वासर जोग ।।५१३।। करि बिहार पहुंते कैलास । दरसन किया मुगति की प्रास ।। वारहविध लाथा तप ध्यान । बाहर भ्यंतर उत्तम ग्यांन ।३५१४।। सुग्रीव दशानन पास गया । श्रीप्रभा सुविवाह कर दिया ।। पटराणी थापी सिंह घरी । पाछे च्याही घणी प्रससरी ॥५१५॥ सुग्रीव ने सौंप्या निजपुर राज । सो फिर कर भूप का काज ।। नीलकमल विजयारघ देस ! तिहां रहै नील कमल नरेस ।।५१६।। श्रीदेवी राणी तसु गेह । रतनावली पुत्री सुभ देह ।। दशानन ब्याही रतनावली । भोग भुगांत मान बह रली ।।५१७॥ रगानन को कैलास मंदना ह्वात बैंठि करि चले विमाण । गिरि के लास परि थाप्यो अनि ।। तन मन सोच कर दशसीस । मंत्री भणे सुणों नर ईस ।।५१८।। गिरि कैलास बहत्तर देहुरा । तीन चोंबीस रतन विंच परा ।। वंदनीक हैगी इह ठौर । या समान तीरथ नहीं और ।।५१६ बालि की तपस्या इण ठां बासि तपस्या करै । तिण कारण विवाण नहीं टर ।। सोभनीक तिहां वृक्ष उतंग । फलत फलत बिराज रंग ।।५२०॥ चिमक सिला मानु रवि किरण । दरसरण कीयां दुख का हरण ।। गंगा नदी चले तिहा धनी । उजल वरण सोभा जक बनी ।।५२१।। दसानन फोप्या तिहबार । जाणे परवत लेउं उखार ।। उलटो गिर सायर में देउं । निज बल तशी परिक्षा लेउ ।।५२२॥ उतरचा पाप भूमि पग दिया । त्रोथ प्रति चित्त में किया। चढि परवत पर पहुंतो तहां । करै वालि मुनिवर सप जहां ।।५२३॥ साहि देख करि भौंह चढाय। हथेली काटई दांत चबाई । निठ र दयण मुख सेती कहै । तू यो ही देही क्यों दहै ॥५२४।। तेरे मन का क्रोध न घटया । जैन धरम कछु तप करि सटा ।। अहंकार ते मनमें धरा । मेरा विमान रह्या जो परा ॥५२५।। अव तू देख कहा मैं करौं । परवत सहित सायर संचारों ।। जो त सिष पाई कछु भली । मब के बर्च तो जाणों बली ॥५२६॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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