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________________ पपपुरास वहरि भणे मंदोदरी वन । सुणु' कथा चित्त राषो चैन । पाताल लंका चंद्रदपि रहै । अनुराधा राणी सुख लहै ।।४।। चंद्रावधि सहजै मरि गया । राणी तब वनवासा लिया ।। बनमें भया पुत्र परसूत । बलिनामें लभरा संयुक्त ।।४८६।। विद्या सौख भया बहु गुनी । अपने मन राख प्रतिमनी ॥ वालसमीप मिल्या बल प्राय । दोन्यू रह प्रीत अधिकाइ ।।४८७।। ऐसे सुरिण करि भेज्या दूत । और बात मति लिषी बहुत'। पहुंच्या किषंदपुर जिहां बालि । पत्री ताहि सौंप वरि हाल ॥४८॥ दसानन सम भूपति नहीं और । जाके बस को नाहिं मोर ।। तुमारे पुरखाने दई भूमि । वे सबा करले ताव मूमि ॥४८ तुम भी मांनु उनकी आन । ज्यों ए रहें तुम्हारे प्रान ॥ अब तुम साथि हमारे पलो । श्री प्रभा कन्यां ले मिलो ||६०! ज्यौं तुझ देश परगने देइ । प्रादर सहित नगर में लेह ।। बालि नरेस कहै समझाय 1 में पद नमूं जिणेश्वर राय ॥४६१|| कैसे ताहि नमांक सीस । मेरे बडा पर्छ जगदीस ॥ दूगा नै प्रणामू किस भांलि । मै भगवंत सुमरउं दिनराति ।।४६२।। उह असा है क्या बलबान । मुझने वचन कहै इस भांति । जो हूं संक उपरि पढि जार्ज 1 मारौं उलटि सब उसका वाच ।।४६३।। उठां कोय चल गहे तरवार । माउ दूत मिलाउँ छारि ।। भव वल का कर पकरं वाल । दूत न मार को भूपाल ॥४४॥ योह बल निज पति का वैन । प्राया हमें संदेशा दैन । धका दिवाय' कर दिया निकार । गया दूत फिर उतनी बार ४६५॥ सकल बाल ब्योरा सौ कही । तुय तें तिण सम मान नहीं । लंकपति सेना सब टेर । देसपति साथ लिये तह वेर ॥४९॥ युद्ध वर्णन चाल्यो दल छायो पाकास ! पहुंचे किकंधपुर के पास ।। बाजा तब बाज्या बहुजोर । गाम घेर लीन्हा चहूं पोर ।।४६७॥ रालि भूप नै भई संभार । नल नौल पाए जु कुमार ॥ सूर सुभट सब एकठे किये । हय गय रथ वाहन वह लिये ।।४६८
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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