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पद्मपुराण
जम भेज्या सुरगतिपुर देस । खुसी हुए सब भूप नरेस ।। दसानन नगर लिये सब साघ । इन्द्र सुतिन झांडी उपाधि ।।४५६।। त्रिकुटाचल रतनश्रव राज 1 मनबंछित का हुवा काज ।। किकंधपुर सूरजरज दिया । किषपुर राज अच्छरज लिया ।।४६०।। सुमाली मालिवान दोऊ लंका घी सुभ साता तमु भाई घणी ।। सेवा कर वे तीनु वीर । लह्या सब सुख पाय सरीर 11४६१।। छत्र सिंघासण घामर घने । बहत गयंद डोर के बने । हम गय रथ पायक असवार । मेहल पढ़या देखे नर नारि ।।४६२।। लाल जवाहर डारें मम । सगली सोभा वणी अनूप ।। पहुंचे गढ लंका में जाय । बजे निसांग गुणी गुण गाय ।। ४६३॥ सब कुटंब भेट पागलै लागि । असुभ करम समले गये भाग ।। इतनी कथा कही जिणराय । धेणिक मूप सुणी मन लाय ।।४६।।
सोरठा श्री जिण घरम प्रसाद, वृद्धि भई परिचार की। पायो लंकाराज, राक्षसबंसी जग तिलक ।।४६५।। पति श्री पमपुराणे दशग्रीव विधामक
सप्तम विधानक
चौपई गाली सुप्रीव वर्णन
किषिधपुर सूरज रज भूप । इन्द्रमालिनी नारि सहाप ।। बालि पुत्र ताकै उर भया । चरम सरीरी रूप निरमया ।४६६।। रसनमाला गर्म भया सुसीव । जानै घरम करम की नींव ॥ दिन दिन बढ़त सयाने भये । विद्या पति पंडित अति थये ।।४६७।। राजनीति का जाणे भेव । मनमें जमैं सदा जिणदेव ॥ सदा रहे हिरद में शान । सम्यग दृष्टि निश्चल ध्यान ॥४६॥ सूरतिवंत पराक्रमी घने । दुरजन कप नाम के सुने ।। किषपुरी मच्छर रज राय । हरीवांत प्रिया सोमं पट ठाइ ।।४६६।। प्रथम पुत्र जनम्यां नल नाम । दूजा मील दया का पाम 11 चरम सरीरी उजली देह । महा पराक्रमी घरम सनेह ।।४७०।।