SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ तुमारा चित्र सीस घरि लिया। ता कारण मैं तुम हर लिया || चलो बेग तुम करहू बियाह । मिरैं सकल हिरदे के दाह ॥ ४०४॥ सुरज उदयपुर में सब गये । राजा पास बधावा गये ! सुभ लगने व्याही सुवरी । भोग मगन में बीते घड़ी || ४०५ ॥ गंगा महींदर भूप दो भए क्रोध के रूप ॥ इन परदेसी में कन्या दई । हमारी उसने कारण न लई ||४०६।३ सेन्यां ले बल दोंडे सूर विद्याधर विद्या भरपूर सुरज उदयपुर पेरघा प्राय । हरिषेण सु कहूँ समुझाय ॥ ४०७ ।। तुम ग्रह रही हम जा लरन । तुम पाहुरगा न होवे मरण || तब हंसि करि बोले हरिषेन तुम घरि मंठि करो सुखखन || ४०८ हमरी स्युं करि हैं युद्ध । धपणां मन तुम राखो सुषि ॥ सैन साथ ले मुद्दमल भए । सुरवीर तहां जुन बहु भए ।।४०६ ।। दारुरण जुन भया भीत। हरिषेन को भई तब जीत ।। जीत्या सत्र भया श्रानंद | बाजे बजे महा सुखकंद ॥ ४१० ॥ आयुधशाला कारण भया । चक्र सुदर्शन पाया नया ॥ पूजा करि सुदरसन बंदि । चल्या चक्र जीते छह पंड ||४११ || तब आए तापस की पुरी । बारह जोयरण सेन्या परी ॥ सह तापस आये हि बार। श्रासीरवाद दे बारंबार ||४१२ ।। पद्मपुराण तब हरषेन कहे हंसि बात में हुं वह जो तुम वरजात ।। तपसी जारिण दया उर घरी । षिमा करी उन वाही घरी ||४१३ ॥ तपसी कहें तुम हो धरमिष्ट पुण्यवंत क्युं होय न कष्ट ।। वन हिंड में पुण्य सहाय । मन वछित सुख उपजं ग्राम ।।४१४ ।। पुण्य व लक्ष्मी परिवार । पुण्यं भोग लहै संसार | तुम बलवंत मति महापुनीत । तुम कौा सके नर जीत ||४१५|| सब तपस्या मिल प्रस्तुति करी । व्याही नागवसी पुत्तरी ।। पहुंते आय नगर कपिला कंठा कंपण परियरण मिला ||४१६ || मात पिता के बंदे पास रथ चलाइया श्री जिमराइ ॥ मुजं राज करें श्रानंद । ठोर ठोर देहुरा जिणंद ।।४१७।। I
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy