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मुनि सभाचं एवं उनका पथरारण
ते विद्या साधन को गया । सात दिवस का वादा दिया ।। चन्द्रहास षडग नै पाय । अब प्रायसी दशानन राय ।।२८१५
विद्या सिद्ध मन वांछित भई । चन्द्रहास की प्रापति भई ।। राबरण के दर्शन
माया रावण श्री जिन भौन । साव्या भला महूल सोन ।।२८२॥ मंत्रियां प्राय कियो परिणाम । देख्यो रूप लक्षण गुण धाम !! ऊंचे प्रासन वठा प्राय । रवि ज्यों सोभा बपु परताप ।।२८६।। पूछ जब धसानन कुमार । कबण काज माया भो द्वार ।। स्वर्गगीतपुर दक्षिण देश । दैत्यनाथ तहां बडो नरेश ।।२४।। ताके तनया मन्दोदरी । जाम रूप नहीं अपछरी ।। चन्द्र ललाट पै भौंह कर्बान । मृगनयनी लज्या गुन षांन ।।२८५।। मासा कीर रू सुठट कपोल । उष्ट रंग दंत सहज तंबोल ॥ कुच मुज चरण कमर केहरी । सुघर कलाई सोमै परी ।।२।। ऐसी है मूरण गण संयुक्त । हंस गमरणी नथ किरण जूगत्ति ।।
तु मनि मत्त बहै सुदरी । लेहु लगन साधो सुभ घरी ॥२८७।। मन्दोदरी के साप विषाह
लियो लगन मन रहस्या घनां । स्वयंपुर गए कुटंब मैं भना ।।
आनंद हुमा दोऊ कुल मांझ । बाजे बा वासुर सांझ ।।२८८।। भले महूरत कियो विवाह । बहुत अडंबर करि उत्साह । भोग भगति में बीतं घडी । सुखमाने दंपति तिस घड़ी ॥२८६।। दोऊ वोक कला विध करै । अधिक प्रीत उर माही घरं ॥ मेषगिर पर्वत ऊपरि वाय । एक जोजन की है चउराइ ॥२६०।। छह हजार नप की पुत्री । षेले सरवर कपर खडी।। बसन उतार कर असनान । उझाकि वझकि सब झांक यानि ।।२६१।। जल उछाल खेल सहेलियां । गावं सरस चउ बोलियां ।। घाट बाट रखबाला रहैं । मारग चल न सब बट रहै ।।२६२।। दसानन विद्या संभारि । पहुँतो जाय सरोवर पाल ।। सगली कम्पा रही लज़ाय' । ताकू देख रही मुरझाय ।।२६३।।