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________________ દ્ छत्र सिंहासन चामर दई । दियो मुकट सुर रतनां मई ॥ बहुरधौ कथा मुहुपपुर गई । बहुत प्रानंद बधाई भई ।। २४२ ।। सुमाली एवं मालियान की कया हह अलका किबंधपुर सुनी। बाजे बाजा मा गुनी ॥ सब परिवार भया श्रानंद । पूजा कौनी देव जिद १।२४३ ।। स्यों परिवार स्वयंपुर चले। सुमाली मालिवान दोज मिले 11 सूरजरज अंबरजि सूप । वंदि विमान बने जु अनूप ॥ २४४॥ परिया युत श्राये जिए थान पूजा कोंनी निह आए || भई र कोयो विश्राम करई सामायिक ले जिस एाम ।। २४५।। उत्तरतं रतनश्ववा कंकसी मिले सुनउसे चिता नसी || च्यारू पुरुष प्राए तिह घरी । आए सब परिवार की तिरी ॥ २४६ ॥ ए बालक उटि लागे पाय । उनु हिये सौं लिये लगाये || कैकसी में करें इंडोत । जनुं दई आसीस बहुत ॥ २४७॥ किस्तुरी सामग्री मेल ॥ तरपति बहु धन धन गर्भ रतन की यांनि । तुझलें बढ़े घणे संतान ॥ पुरुषां सिंघासन बसाइ । बहुत भांत कीनी मनुहार ॥ २४८ ॥ ॥ चडकी कनक बचत मरिमलाल । हीरा पनां अवर प्रवाल लिनपरि बैठे भूपति प्राय करें उबटना गंध मिलाय ।। २४६ ॥ सौंधा अगरजा तेल फुलेल नाई सुघड करें तिहां सेव F पद्यपुराण पा भेद ।। २५०१। सुख निरमल जल कंचन के कुंभ । ये सोमें ज्यों सुंदर दंभ ॥ ढारै कलस करें असमान । गाउँ गुणिया चतुर सुजाण ।।२५१ ।। उत्तम घोवती पहरी भली । तिहां सुबर मार्ने बहु रली ॥ इन सरीर में इसी सुबास । सा भवर न मूकै पास ।। २५२।१ दमानन मान करा कुमार । वभीषण सेव करें बहु भाइ || नमस्कार चरणन को करें 1 पुरुषामुख अधिक मन परं ।। २५३ ।। घट रस व्यंजन भई रसोई व्यंजन भले । स्युं कटुंब जीमण कु चले ॥ रतन तिवाई सोवन थाल । कंचनभारि गंगाजल घाल ।। २५४१ घेवर बरफी लडुवा सेत । बहु पकवान परुस्या तेह् ॥ बटरस भोजन कीने घने । हरे वपेरे उत्तम बने ।। २५५ ।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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