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________________ पपुराण पाप कुमर तब सनमुख भया । बहुत जुध दोउ भूपति थया । परवत की सिल लई उपार । चउंघां पडं जो घनहए पार ॥१५॥ दोऊ भूपति मुष्टिका लरे । कातर लोग देख सब डरें ।। तोउ न माने दोउं हार । वान पत्र लषि मारी हारि ।।१५।। तु बालक प्रजहू अग्यान । मानु कुवर रीस मति ठान । गही कर डारमा चक्र फिराय । माली ग्रीव पड़ी मुवि माय ।।१५३।। सुमाली मालिवान दोक वीर । भाजि गए सब लंका तीर ।। बैठि बिमान चले के गेह । सोग लहरि आँ इन्द्रन की देह ॥१५४|| इन्द्र तनै छोडे बहु बनि । ए राक्षस पायें नहीं जान ॥ मंत्री त समझा बात । भाग्या के पीछे कहा जात ।।१५५।। मंत्री वचन सुणे सिह वार | उनकी छोड़ दई तलवार 11 वे पहुंचे लंका में मांन । राणी रोवै कर बखान ॥१५६।। माली के गुण बरनै लोग । सब परवार में माता खोग ।। सुमाली मालवान भय करै । इंद्र भूप भय बिता घरै ॥१५७।। बहोत भांति समझाया परिवार । गए अलंका पुरी मझार ॥ जीता इन्द्र राजा महाबली । जाचिक बोले बिरदाबली ।।१५८ ।। कोतिक देख सराहै दुनी। परिपन मांझ बढाई पनी ।। मात पिता के वंदे पाय । बहुत भांति के विनय कराम ॥१५६।। प्रानंद मन हुआ हुल्लास । पान्यां इन्द्र फिरी चहुं पास ॥ बक्र धुमा प्रादित्या तिरी । ससी पुत्र भया ता घरी ।।१६।। लोकपाल इन्द्र का भया । सर्व जीव की पाल क्या ॥ पूरष दिसा उद्मोतपुर नगर । कांतिमन भूप लोकपाल अगर ।।१६१।। मेघरथपुर महाबली भूप । परणा नारी महास्वरूप ।। वरुण नाम पुत्र ता गेह । लोकपाल तीसरा करेह ।।१६२स। नगर मेघपुर पच्छिम देस । रहै तिहां सूरज नरेस ।। कनकावली का पुत्र नरसेर । बाकु थापा भंडारी टेर ।।१६३।। कांचनपुर पूरब दिसि पोर । बला प्रगनि नरपति तिह ठौर ।। श्रीप्रभा रांगी पाट धनी । चंद्र कर्म पुत्र सुगुनी ॥१६४।। नाम घरत प्रसुर सुर येह । और दस दिगपाल थापेहि ।। जष्य दीप किंतर किन्नरा । गंधर्व राग सुनाव खरा १६५।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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