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पद्मपुराण
राणी कहै सुणु प्राणपती । इंद्राणी से सुख चाहो थिति ।। राजा वचन कहै परि ग्यांन । हम विद्याधर देव समान ||१२२।। पातर अादि गुनी जन धने । नाचे गावे सुख सब बनें । नो महीने बीते सुभ धरी । भया पुत्र मानी लीपरी ।।१२३।। रूप लक्षन ससि की उनहार । इंद्र नाम जनमिया कुमार ।। ज्यों दुतिया ससि कांति कौं चई । ज्यों सालक पल पल में बर्व ।।१२४।। जोबन बस विवाही नारि । माली सहल किलर उनहार । और पाठ काही ५६ मी. इंद्राणी सभा वनी ॥१२५।। जोजन एक को उंचो गेह । सुरगपुरी सी सोभा देह ॥ पचीस सहन गुनी जन लोग । निरत कर गावं बलु भोग ।।१२६।। पंच सबद बाथे दिन रमण । तासु सबद सुरिण सोभा चैन ।। हय गम विभव भंडार असेस ! मानें सब भूपति प्रादेस ॥१२७।।
सुखमें दिन बीते घने, करं प्रजा सुख चैन । सुखने दुखने देखिये, निस वासर भरि नन ॥१२॥
चोपर्ड माली भूप लंका का धनी । तिसकी मॉन मांने सव दुनी ।। देस देस ते प्राव भेंट । उरपै भूप न आवै हैठ ॥१२६॥ इंद्रकुमार प्रतापी भया । माली का लोग निकाला दिया । अपने लोग तिहां बैठाय । नरपति मिले इन्द्र सौं प्राय ||१३०॥ माली राय बात यह सुनी । भया कोप कांपी सब दुनी ।। विजयारष को दबट करो 1 इहे म्हारी धरणी तल धरौं ।।१३१॥ सेन्या सकल लई नप टेर । चइयो विमान न पायो वेर ।। रंग रंग के वने विमान । चले सुभट छाया असमान ।।१३।। माली सुमाली सुमालिबान । सूरज रज अंबर रज जान ।।
और बहुत भूपति संग चले । परि प्राभरा बहुत भले ।।१३।। विजयारध गिरि पहूंचे जाय । दुरजन को मार अब घाय || भई रया तिहां उतरे लोग । सुपना देखि मन वाढा सोग ।।१३।। कुरितु तणां देखिया मेह । बिजली देही पडि बह देह ।। प्रगनि जल चुवां तिहां धनां । रौंवे मंजार स्वान सिर धुनां ॥१३५।।