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________________ मुनि सभा एवं सनका पाराश करि विवाह गए फिरि थान । भोग मगन बहु सुस्त्र की स्लान ।। बहुविध सेन्यो लेकर चले । विजयाधर मन साधे भले ।।७५॥ सब राजा ने मानी यांन । धुजा मांझि कपि के निसान ।। कपि के चित्र मुकट में बने । दांचर वंगी प्रगटे घने ॥७६।। देश साथि सब अपने किये । बहु पुर नगर बसाए नए ।। कपिकेतु जनमिया कुमार । रूपवंत पाशि की उनहार ।।७७.। जोवन वय श्रीप्रभा नारि । इन्द्री सुख माने संसारि ।। आप तात जिण दिशा लई । राजविभूति पुत्र ने दई ।।७८|| पाल प्रजा कपि बज नरेस । प्रतिबल पुष भया मुभवेस । ग्राप लिया संयम का भार । प्रतिबल को सोंच्या संसार ||७|| गमन आनंद पेचर प्रानंद । गिरिनंदन तप सरवर नंद ।। श्रेयांस जिणवर के समै । श्रीकंठ किंषपुर गर्म ।।८।। तीन मागर बीते जज काल । अमरप्रम उपज्या मुवान ।। बासुपुज्य जिणावर के थाना पूजि वरण आयो नृप वांगा ।।८।। बाहि कुल भूपति बप भये 1 काटि करम ऊंची गति गये ।। वानर वंसी विद्याधर कहै । वरली सकल पार को लहै ।।२।। महोदधि रवि याही कुल भूप । विद्युतप्रकास रांगी सुमरूप ।। और स्त्री बिवाही घनी । पुष नठोत्तर सो मुग्ण मुगी ।।३।। किंषलपुर का भोगवै ग़ज । वानरकुली कुनिका काज ॥ उत्तिम कुल इनका सुबिनीत । दया घरम सुबहुते प्रीत ।।४।। महिल राजा भार अनेक नाम कहीं ली कहैं । विद्याधर गुणवंत सकल दुरजन दहे ।। कारी जगत परिजीत पारण सगले वहै । प्रष्ट करम कु काटि मुक्ति को पथ गहे ।।८।। इति श्री पद्मपुराणे वानर वंसी उत्पत्ति चतुर्थ संधि विधानक पंचम सोषि चौपई लंका का राजा बिच तवेग विद्य तवेग लंका का धनी । श्रीचंद्रा गरणी गुण भरी।। नारी तेग विवाही घणी । ते सुथ सोभा जाय न गरणी ।।१।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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