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वानर द्वीप
भोग मगन सब सुख के साज । दोऊं नगर करें ते राज ॥ कतिधवल श्रीकंठ सौं कहै । लंका के जेते पुर रहे ||३०|| जहाँ कहो सोईं व नगर । वैरभाव भाजेंगे सगर || दक्षिण दिसा भीम प्रति भीम। सघन बस सुविराजं सीम ||३१|| उत्तर दिस प्रस्त सा दीप | मिरगदीप सौचित्र कर दीप ||
सकल दीप की सोमा कही । श्रीकंठ सुनि मनमैं गही ||३२||
पद्मश्री प्रस्त्रीन बुलाय । दंपति मिलसे सुख के भाव ॥ कीत्तिधवल के निकले संग । किषल पर्वत देखिये उसंग ||३३
चौदह योजग पर्वत ऊंच । वानर द्वीप बसै ता षुष ॥
नील नगर की महिमा धनी । सायर मांइ भोट अति बनी ॥ ३४ ॥
मन उपवन नीली चहुंओर पंखी कर हरव सौं सोर ॥ देख श्रीकंठ करें मानंद 1 कहूं पंछी गुल पढे जिस्पंद ||३५||
पद्मपुराण
बोलें सब सुहाये बोल । रहस रत्ती सों करें किलोल ॥ हरित के फूले फल फूल | बैठक घनी बनी श्रनुकुल || ३६ || मंदिर चित्रकारी सुळे धने । कूप श्राविका सरोवर घने || जल में कमल विराज भले । भवर गुंजार करें पहुफले ||३७|| जैसे गति कज्जल भरें। कमल कपर मधुकर गुजरें ||३८|
बहुरि गिरि चढि देखे देस मन आनंदित भए नरेस || कपि पकड़ा बहु बांधि । देखे राय नयन सों सांधि ||३६||
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हैम सकिल जाउ पढे । मीठे भोजन नाना भांति किंवल गिरा
ए दीसें मारस की भांति कोमल रोम वो सुभ गात ॥ घुंधर बाल सु वानर मके ||४०|| उनह पुत्रायें संस्था प्रात ।। भूप । सोभा दी सकल अनूप ।।४१।।
किंवलपुर नगर
चौदह जोजन ऊंचा मेर। बैयालीस जोजन का फेर ॥ किंवलपुर नगर ता ऊपर बसे । वन उपवन सोभा उलसे ||४२ || कंचन कोट रतन के जडित । सुरगपुरी की सोभा हरत ॥ रतनसिला की देहली वशी । नयरी सघरण यसै तिहां धरणी ||४३||