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________________ मुमि सभाचं एवं उनका पमपुराण निरमल सरोवर देखे घने । फूल फले कमस्त्र प्रति बने । स्वर्गलोक किन्नर उनहार । राणी सोमै राज दुवार ॥१७३।। भई रयण मुरझाये फूल । भमरा रहे बास में भूल ।। देखई उपज्यो नृप ने ज्ञान । एके इन्द्री में भ्रमर मुलाान ॥१७४।। पंच इंद्री बसि रहे मलाय । उन जीवानं कौंग सहाय ।। अंसी समझि भयो बैराग । राजरिद्धि सह परियन त्यान ।।१७।। अमर राक्षस प्रमर राक्षस ने सौंप्यो राज । दिक्षा लई मुकति के काज ।। . संसार परीष्या घेषन किया। मंबर देखि मति पायी ह्यिा ॥१६॥ भमरा वींध्यां कमल में, दये प्रांन ता वीज ॥ राजा क्रीडा मति करही, विषय गणी सब नीच ।।१७७।। सडिल्ल मनमें रि वैराग चित्त चिमझ्या परा। इह संसार असार दुख सागर भरा।। एक इंद्री के विर्ष प्रांए परिहरि करें। पंष इन्द्री के विष सेय क्यों निस्तरै ।।१७।। चौपई श्रुतसागर मुनि के पास गमन राजा सोच मनमें ग्यान । श्रुतसागर प्राये कन थांन ।। घरचो ध्यान तप बारे अनेक । मन वच काय न हो एक ॥१७६ तेरह विध चारित्र सौ चित्त । सहैं परोसा वाइस नित ।। अवर अनेक सिष्य ता संग । सह परीसा अपने घंन ।।१०।। रूप गणे अति महा प्रवीण । चंद्रकांति देखत प्रति होरण ।। माली गया मूप के पास । मुनिवर जोग दिया वनवास ।।१८।। ग्यांन तीन अंतरगत वस । दरसत देखत पातिग नसें ।। सूनि नरेस मन किया उल्हास । पूजण चले सुगति की प्रास ।।१२।। नगर लोग चले संग बहत । प्रतक्षरण बन में जाय पहंत ।। नमस्कार करि करी इंडोत. 1 पवन क्रांति ससी की प्रति जोत ॥१८शा घरण प्रक्षालण विनती करें। कहो धर्म मम संसय हरै॥ मुनिवर कहै धर्म समुझाय । हिंसा त पालो मन लाय ।।१८४॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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