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________________ मुनि समाचन्द एवं उनका पत्मपुराण सगर जीम कर चक्र देस अपने करें । तुद पंट के भूप हाथ जोडपो खो। सुन्या परम जिन पास भाव बहु मन घरघा ।। दाणी अगम अपार जीव सुणि निस्तरघा ॥१२०।। मधवसु चक्री तोसरा । सनतकुमार भी होई ।। सांति कुयु अरुहनाय जी । सुभरो नित सब कोइ ॥१२॥ फिर सुभोम चकी भया। पत्रम सुचक्री जान || हरषेन जयसेन नृप । ब्रह्मदस गुणांन ॥१२२॥ त्रिविष्ट द्विविष्ट स्वयंभव । पुरुषोत्तम सिंघ भेव ।। पुंडरीक दत्त लक्ष्मणा । कृष्णनारायण देव ।। १२३।। सुत्तारिक असुग्रीव 1 मेर कुमेर मधु कैट ।। नि-संभव पह्लाद । वलि रावणा जरासिंघ हु वाहेट १५१२४। विस्वानल सुप्रतिष्छ । प्रकलपुरीक जीतंधर ।। विजय अचल सुधरम सुपुत्र सुदरसन पानंद । नंदमित्र श्री रामचन्द्र हरनधर ए शुभ्रकंद । भीम बली जितसत्रुजी जित नाभि पोदिल इष्ट ।।१२५।। क्रोधानले भया ईग्यारमा । महास्द्र बलवीर ।। वेस: सीलाका पुरुष सब । सम्यकदादी धीर । १२६।। अडिल्ल श्री जिगण म्यांन गंभीर अंत नहि पाइये । भव्य ज्जीव धरि भाव प्रात उठि घ्याइये ।। केबानम्मान अपार सकन संस भजे । दिया धरम उपदेस सुख हिरदै रजै ।।१२।। चौपाई संसार का स्वरूप अव देखो संसार सरूफ । वावर रंक कबहू भूप ।। जीव दया विन कबै न सुख । गिरदय पाव भव भव दुख ॥१२८|| ह्य गय विभय द्रव्य भंडार । रहे सवल हैगे गिगनांकार ।। सज्जन कुटुंब दामनी उद्मोत । छिनही माहिं अंधेरा होत || १२६।। राजा विभूतरू पुष कलित्र । राब विनासी बुदबुदावत । इस संसार नहीं थिर कोय । देही प्रादि नहीं साथि होई ॥१३॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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