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________________ आश्वास: मूलाराधना आराधणापडायं गेण्हंतस्स हु करो णमोकारो ॥ मल्लस्स जयपडायं जह हत्थो घेनुकामस्स ॥ ७५८ ॥ नमस्कारेण गृह्णाति देवीमाराधनां यतिः ।। पताकामिव हस्तेन मल्लो निश्चितमानसः ॥ ७८७॥ विजयोदया-भाराधनापताका ग्रहीतुकामस्य मल्लस्य भावनमस्कार पच करोजयपताका प्रहीतुकामस्य हस्त श्वेत्युत्तरगाथार्थः॥ ___ अर्थ-जो क्षपक आराधनारूप पताका ग्रहण करता है उसका भाषनमस्कार ही हाथ है. जैसे जयपताकाको मल्ल पुरुष अपने हाथसे ग्रहण करता है. अण्णाणी विय गोवो आराधित्ता मदो णमोकार ।। चंपाए सेहिकुले जादो पत्तो य सामपणं ॥ ७५९ ।। अज्ञानोऽपि मृतो गोपो नमस्कारपरायणः ॥ चम्पावेष्ठिकले भूत्वा प्रपेदे संयम परम् ।। ७८८ ॥ समस्तानि दुःखानि विच्छिद्य सघः।। सुखानि प्रभूतानि साराणि दत्वा ॥ मुवा सेव्यमानं विधानेन मोक्षे । विवाधानि दत्ते नमस्कारमित्रम् ॥७८९।। इति नमस्कारः। विजयोदया-मईवगुणज्ञानरहितोऽपि गोपो द्रव्यनमस्कारमाराध्य मृतश्चंपापुर प्रेष्ठिकुल जातः । धामण्यं च प्राप्तवान् इति च द्रव्यनमस्कारोऽध्ययं विपुलं फलं प्रयदातीति भावः । नमस्कारो ध्याख्यातः । णमोकारं॥ अर्थ-सुभग नामक पालाको अईतके ज्ञानादि गुणोंका स्वरूप मालूम नहीं था. उसने मरण समयमें अईतको द्रव्यनमस्कार किया था. मरणके अनंतर वह चंपापुरनगरमें वृषभदत्तश्रेष्ठीका पुत्र हुआ. श्रमण अवस्थाको प्राप्त होकर मुक्त हुआ. द्रश्यनमस्कार भी ऐसा विपुल फल अर्पण करता है, नमस्कारका विवेचन हुआ.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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