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________________ मलाराधना आवास। ८०८ Saamana अदनानं गत्रिभोजनं न । श्रदत्वादाने ने नाम्यागिनः प्राणापहार पत्र कृतो भवति । बहिश्चराः प्राणा धनानि प्राण हागनयन्ती : गत्रा च भोजनं अनेकामामूलं । रात्री भ्रमं पड़ जीवनिकायबाधा । अयोग्यस्य प्रत्याBा । दातक्षालया। कानादिनियमनशम्प, दाधिकागमननाथ तस्यामनश्चात्र. धागदशम्य अपरीक्षा । महापरिगद बेव मैयुग परिवहश्चैव । मोस मृषा च ॥ मुलारा-पिंटोवधिसज्जा आहारे उपकरणे वसती चोद्गमादिरतिचारः । गिहि मत्ता गृहिणाममत्रेषु भाजनेपु कुंभकरकशरावादिषु कस्यचिज्जलभस्मादिद्रव्यस्य निक्षेपणं तैर्वा कस्यचिदादानं चारित्रातिचारः तेषां दुष्प्रतिलेखत्वान् शोधयितुमशक्यत्वाच्च ।णिसंग्ज निषद्या पीठिकायां असंघां पटायां मंचके वा आसनमित्यर्थः । तेषु हि अनेकछिद्राकुलेपु प्राणिनो दुनिरीक्या या वा नापनेतुं शक्परन् । ततोऽदिसानताहिचारा | अथा गोचरप्रविष्टस्प गृहेषु प्रवेशन. निपया ।तत्र दि ब्रह्मचर्यस्य विनाशः, नीभिः सह संवासात् । भोजनार्थिनां मुजिक्रियांतरायकरणादुद्वेगः क्रोधादिसंक्लेशः स्वात् । पाकुसे स्नानमुद्र- गात्र पक्षालनं च पाकुप्तमित्यभिधीयते तेहि भूमिरधादिस्थाः स्वदेहस्थाश्च प्राणिनी विनश्यति । लिग लिंगविकासविहिया नासत्यालिंगशब्देनो कयते । तेणिका पौर्य । रादिभने रानिमोजने तद्धयोकासंयममूलं पजीवनिकायवधात् । तत्कारिणां चायोग्यस्य प्रत्याख्यातस्य च भोजनं दातुः पात्रादिस्थापन प्रदेशदायका गमनगागम्यावस्थानदेशानां बाइपरीक्षा। अर्थ-पिंड-आहार, उपकरण और वसतिका इनका स्वीकार करते समय मेरेसे उद्गम, उत्पादन एषणा वगैरह दोष उत्पन्न हुए होंगे. गृहस्थोंके भाजन अर्थान् कुम, घडा, करक कमंडलु, शराब वगैरे पात्रों से किसी पात्रमें कोई पदार्थ रक्खे होंगे. अथवा किसीको दिये होंगे ये सब चारित्रातिचार है. क्यों कि ये पदार्थ अंदरसे स्वच्छ करना कठिन है. छोटी चौकी, बत्रासन, खाट, पलंग इनके ऊपर चैठना इसको निपद्या कहते हैं. चाकी वगैरह पदाथामें अनेक छिद्र रहा है और उसमें जो प्राणी रहते हैं वे दीखते भी नहीं, यदि दीस भी तो उनको निकाल नहीं सकते, इसलिए ऐस चौकी वगैरह पदार्थोंपर बैठनेसे अहिंसात्रतमें अतिचार उत्पन होते हैं. यही अभिधाय अन्य ग्रंथाम भी कहा है __अथवा आहारके लिये श्रावकके घर जाकर वहां बैठाना गह भी अयोग्य है. खियोंके साथ सहवास होनेसे ब्रह्मचर्यका नाश होता है. पारंबार जियाके रखन, अधरोष्ठ वगैरह अवयव देखने से कामज्वर उत्पन्न होता | ८०८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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