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________________ मूलाराधना बाबासा ६७८ HER देशको जामल देश कहते हैं. दोनो देशोंके लक्षण जिसमें है उसको साधारण देश कहते हैं. उष्णकाल, शीतकाल और साधारणकाल इसका भी शान होना आवश्यक है, क्षमा, मार्दव, आजच, संतोषादि परिमाणों को भाव कहते हैं, क्रोधादिक विकारोंको भी परिणाम कहते हैं. नायश्चित्त क्रिया में परिणाम और सहवास इनका मो ज्ञान होना पाहिंय, यह मुनि मेरा यश हो ऐसा अभिप्राय धारण कर प्रायश्चित्त लेनमें प्रवृत्त हुआ है अथवा लाभके लिये किंवा कर्मानर्जराके लिंग प्रवृत्त हुआ है इत्यादि हेतु जानलेना भी आचार्य के लिये आवश्यक है. प्रायश्चित्त लेनवालका उत्साह, शरीरसामर्थ्य, दीक्षाकाल, आगमज्ञान, अर्थात् यह आगमका अल्पज्ञाता है अथवा बहुज्ञाता है इत्यादिक बातोंका ज्ञान कर लेना भी आवश्यक है. मोतूण रागदोसे ववहारं पठवेइ सो तस्स ॥ घवहारकरणकुसलो जिणबयणविसारदो धीरो ॥ ४५१ ॥ रागद्वेषावपाकृत्य व्यवहारविशारदः ।। व्यवहारी ददात्यस्मै प्रायश्चित्तं विधानतः ।। १६३ ।। विजयोदया-मोनूण त्यक्त्वा । रागनीसे राग द्वेपं च मध्यस्थः सथिति यावत् । घपहार पवेदि सो तस्स प्रायविसं दादाति स सूरिस्तस्मै । बयद्वारकरणकुसलो प्रायश्चित्तदान फुशलः जिणचयणविसारदो जिनप्रणीते आगमे निपुणः। धीरो धृतिमान् ॥ मूलारा-पठुवेदि ददाति ।। अर्थ-जिनप्रणीत आगममें निपुण, धर्यवान्, प्रायश्चित्त शास्त्रके ज्ञाता ऐसे आचार्य राग और द्वेषभावना छोडकर अर्थात् मध्यस्थ भाव धारण कर अपराधी मुनिको प्रायश्चित्त देते हैं. ६७८ अशात्वा प्रायश्चित्तथं यो ददाति तस्य दोषं संकीर्तयत्युत्तरगाथा ववहारमयाणतो ववहरणिज्जं च ववहरंतो सु ॥ उस्सीयदि भवपके अयसं कम्मं च आदियदि ॥ ४५२ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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