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________________ लाराधना आवास: D हिंदी अर्थ-जिन्होंके द्वारा कर्मका ग्रहण होता है ऐसे मन, वचन व शरीरके द्वारा होनेवाली क्रियाओंका त्याग-परिहार करना उसको चारित्र कहते हैं। प्रस्तुत गाथामें जो संयम शब्द है वह चारित्रका वाचक है। अन्य आचार्योंने भी चारित्रका लक्षण 'फर्मादानानिमित्तकियोपरमो ज्ञानवतश्चारित्र, इति ' ऐसा कहा है. इसका भी आभप्राय ऊपरके समानही है । जो चारित्रकी आराधना करते हैं उनको नियमसे-अवश्य तपकी भी आरधना हो जाती है । इस आराधनाका स्वरूप निमप्रकारसे समझना चाहिये । ___ अनशन-चार प्रकारके आहारोंका त्याग करना इसको अनशन कहते हैं । यह अनशन तीन प्रकारका है। मैं भोजन करूं, भोजन कराउ, भोजन करनेवालेको अनुमति देउ इस तरह मनमें संकल्प करना. मैं आहार लेता है, भोजन कर, तम पाओगेगा दोलना. नार प्रचारके आहारको संकल्पपूर्वक शरीरसे ग्रहण करना, हाथसे इपारा करके दूसरोंको ग्रहण करनेमें प्रवृत्त करना. आहार ग्रह्ण करनेके कार्यमें शरीरसे सम्मति देना ऐसी जो मन, वचन, कायकी कर्मग्रहण करनेमें निमित्त होनेवाली क्रियायें उनका त्याग करना उसको अनशन कहते हैं, यह चारित्र ही है. दृप्ति करनेवाला, दर्प उत्पन्न करनेवाला ऐसा जो आहार उसका मन, वचन, कायके तीन योगोंमे त्याग करना अचमोदर्य है, अर्थात् स्वयं पेट पूर्ण भरेगा इतना आहार में ग्रहण करूंगा, कराऊंगा, करनेवालेको सम्मति प्रदान करूंगा ऐसे मन वचन शरीरके संकल्पका त्याग करना इसको अवमोदर्य कहते हैं, आहारकी अभिलाषाको जीतना-इतने घरोंमें, गल्ली में आहार मिलेगा तो लेऊंगा इत्यादि प्रतिज्ञा करके आहारा भिलापाको जीतना इसको वृत्तिपरिसंख्यान कहते हैं. सविषयकी लंपटताको मन बचन शरीरके संकल्पसे त्यागना रसपरित्याग नामका तप है. शरीरको सुख मिले ऐसी भावनाको त्यागना कायक्लेश तप है. चिनमें उत्पन्न हुई व्यग्रताको भगा देना अथात् चित्त व्याकुल न हो इसलिये स्वी, पशु, पण्ड विवर्जिव एकान्त स्थानमें सोना बैठना इसको विविक्तशय्यासन कहते हैं. अपने द्वारा हुवे अपराधोंको छिपानेकी कोशिस न करना, अपराध हो गया तो शघि उसका निवेदन करना यह आलोचना तप है. स्वतः के द्वारा किये गये अशुभ योगसे परावृत्त होना अर्थान् मेरे अपराध मिथ्या होवे ऐसा कह कर पश्चात्ताप करना प्रतिक्रमण है, अपराधोंको न छिपाना तथा अशुभ योगोंसे परावृत्त होना वह तदुभय तप है. जिस जिस पदार्थके अवलंबसे अशुभ परिणाम होते हैं उनको त्यागना अथवा उनसे स्वयं दूर होना यह विवेक Au HAMAREKARAHATTARAKHAN
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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