SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काराधना आश्वासः इत्यत्र झामशद: सामान्ययाची,सत्यं प्रातिनिमिति ब्युस्पसी सा निरूपणा सामान्यशब्द इति । वमा तस्मात् । मिच्छादिड्डी तत्त्वज्ञानरहितः। माणस्ताराधको प.होविसि पवघटना । ज्ञानं नाराधयतीत्यर्थः॥ अत्रापरा व्याख्या ययुक्तं अक्षाने दर्शनाभाष इति किं, तज्ञानं कस्य भवतीति । ततः सूर्य इति । तदतिऐलयं । किं तवज्ञानमित्यस्य प्रश्नस्य प्रतिवचनं न सूत्रेऽस्ति । मिथ्याचागलक्षणतिपावनपरामिय्याष्टिसंयंधिज्ञानत्वमेव अज्ञानलक्षणमित्युभयोरपि प्रतिवचनमिति विकल्प्यते । एवमपि तम्हा न मिच्छदिहि' इति सूबे मिथ्यारानस्याराधकत्वाभाषमेव सूत्रकार उपसंहरति । तत्परित्यज्यासूत्रितमुपादेयमिति फेयं खतंत्रता। ननु च ज्ञानमतरेणापि दर्शनं वर्तते यतो मिथ्यादृष्टिरपि झानस्याराधको भवति । गतानुगतिकत्वेन लोकानां श्रद्रामात्रेणैव प्रवृत्तिप्रनीतेरतो ज्ञानेन दर्शनस्याविनाभावाभाषः इत्यत्राह मलारा०-मुद्धणया। अनंतधर्मात्मकस्य वस्तुनोऽन्यतमधर्मपरिच्छेदस्तदबिनाभाविधर्मपरिच्छेदबलप्रसूतो नयः। शुद्धाः प्रतिपक्षसापेक्षतया निर्दोषा नया येषां प्रमातॄणां ते शुद्धनयास्तीर्थकरदेवादयः । पुण यस्मात् । णाणं परस्याराध्यतया इष्ट ज्ञानं । वैति ब्रुयते । आण्णार्ण ज्ञायते परिच्छिश्यते रस्तुतत्वं येन तज्ज्ञान। न ज्ञानमज्ञान अयथार्थपरिच्छेदक मिध्येत्यर्थः । रनके विना भी सम्यग्दर्शन होता है क्यों कि मिथ्यादृष्टि भी ज्ञानके आराधक देखे गये है. अतः ज्ञान के साथ दर्शनका अविनाभाव नहीं है. इस आक्षेपका उत्तर आचार्य कहते है-- __हिंदी अर्थः-वस्तु अनंत धर्मात्मक है अर्थात् वस्तुमें एकत्व, अनेकत्व, नित्यपना, अनित्यपना, अस्तित्व नास्तित्व, अमेयत्व वगैरह अनंत धर्म है, अत: वस्तुको अनंत धर्मात्मक कहते हैं. ऐसे वस्तुमसे किसी एक धर्मको जो मुख्यतासे जानता है तथा उससे भिन्न अविनाभावी धर्मको जो गौण समझता है ऐसा जो शान उसको नय कहते हैं. 'उपपत्तिबलादर्थपरिच्छेदो नय इति' अर्थात् युक्तीके आश्रयसे पदार्थको जान लेना उसको नय कहते हैं ऐसा पूर्वाचार्योंने कहा है, वस्तके एक धर्मकोही वस्तु समझनेवाला तथा वस्तुके अन्य धर्मकी जो अपेक्षा रखता नहीं ऐसे मानको मिथ्यानय कहते हैं, जैसे वस्तु सर्वथा वणिकही है। सर्वथा नित्यही है, एकही इत्यादि रूपसे वस्तुका प्रतिपादन करनेवाला मान मिथ्यानयरूप है. इस मिथ्या नयफा निरसन करनेके लिए आचार्थने गाथामें 'सुद्ध गया' ऐसा शब्द रख दिया है. मिध्यानय प्रतिपक्षरूप धर्मकी अपेक्षा नहीं करते है. अर्थात् वस्तुका सर्वथा RATEBARBATAItARANASAST
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy