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________________ मूलाराधना आश्वासः १८७६ १२ उत्तरफग्गुणिणखत्ते यदि तो मूलणक्खत्ते पदोसे मरदि । १३ हत्यणखत्ते यदि सो भरणिणवत्ते दिवसे मरदि । १४ चित्ताणकरबत्तेण यदि सो मियासिरणखते अदरले मरदि। १५ साविणक्वते यदिलो रेवदिणवत्ते एमादे मरदि । १६ विसाहणक्खत्ते जदि तो अपिलसाणक्खने मरदि ।। १७ असिसाणक्वत्त जदि तो पुश्चमणक्खत्त दिवस मरदि। १८ मूलणखत जदि तो जेट्टणखत्ते पभादवेलाए मरदि ।।। १५ पुनासाढणखले जदि तो मियसिरणक्खन पदोसवेलाए मरदि। २. उत्तरासादावखत जदि तो दिवस चव अहवा भरपदणकवने अवररहे मरदि ॥ साणाने दिगोणवत्तेण तहिवस कालं करेदि ॥ २२ धणियाणवते यदि तो तदिवसे कालं करेदि, यदि नदिवस कालं ण करदि तो पुण तदिवसे चेव आगंदे मरदि ॥ २३ सदभिसणक्खत्तेण यदि गिहदि जेठाणक्वतेण अस्थवणवेलाए मरदि। २४ पुब्वभड्पदणक्खतेण जदि तो पुणवसुप्रक्वचे रत्तिं मरदि ।। २५ उत्तरभद्दपदे जदि तो दिवसे वहमाणे वा पुण रादो या मरदि ।। २६ रेवतिणखत्ते जदि तो मघणवखने मरदि। इति मरणकटिका णवतगणना सम्मत्ता। . नक्षत्रगुणोंका वर्णन१ यदि अश्विनी नक्षत्रके समय क्षपकने संस्तर ग्रहणा किया होगा तो स्वाति नक्षत्रके समय रातमें उसको समाधिभरण प्राप्त होता है. २ यदि मरणि नक्षत्रक समय क्षपकने समाधि मरणके लिये संस्तरका-बिछानेका आश्रय किया होगा तो रेवती नक्षत्रके समय दिनके प्रारंभ समयमें उसको प्रमाधिभरण प्राप्त होगा. SAHATE १८७६
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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