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लागधमा
आचामः
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यस्याः सद्गुरुपर्वतः प्रभव हत्याहः परावे दिनः ॥
सा व पापमलानि गालपतु ग्तल्वाराधनास्वधुनी ।। २२७३ ।। ३३ पुण्यासबकी मानो मुर्ति ऐसी यह आराधना गंगा स्वर्गारोहण करनेवालोंको मार्गस्वरूप होवे. रत्न प्रयरूप होनेसे लोग इसको बिमार्गगा कहते है. इसकी सबासे नानाप्रकारक पाचक नए होते हैं. मदुरुरूपी पर्वतसे इस आराधनागंगाका जन्म हुआ हैं ऐसे प्राचीन आचार्य कहते हैं. अतः पापगलसे रहित यह गंगानदी तुमार अन्तः करणमें वास करे.
या सर्वज्ञहिमाचलात्मगलिता पुण्यांपुर्णा शुचिः ॥ या सज्झानचरित्रलोचनधरैर्मधर्ना गणीन्र्धता। या कर्मानलघमीडितमुनींद्रभावगाहक्षमा ।।
सा वो मंगलमालनोतु भगवत्याराधनास्यधुनी ।। ६२७४ ।। ३४ यह आराधनागंगा सर्वज्ञ जिनेश्वररूपी हिमालबसे उत्पन्न हुई है. पुण्यरूपी जलसे भरी है और पवित्र है. सम्यग्ज्ञान और नारित्ररूप लोचन-आंख धारणा करनेवाले मणधगॅन जिसको अपने मस्तकपर धारण किया है. कर्मरूपी अग्नासे पीडित मुनीश्वररूपी हाथी जिसमें अवगाहन करते हैं ऐसी मा आराधना स्वर्गनदी तुह्माग़ मंगल करे.
या पुण्यांवधि पूरवि कलिमलप्रक्षालनकोगमा ।।। या निधूप कलेघागि विमलीकतुं क्षमायकान् ।। यामासाथ मुनीमयुगपतयो निर्वान्त्यपंकात्मिकाम् ।।
सा बोऽन्तर्मलदाहमाशु निहतादाराधनास्त्रधुनी ।। २२७५ ॥ ३५ यह नदी पुण्यसमुद्रको पूर्ण करती है. पापमल धोने के कार्य में यही समर्थ है. यही मनिओंके शरीरका नाश करके उनको निर्मल बनाती है. पापरूपी कांचइसे रहित ऐसी इस नदीको प्राा करके मुनिरूपी हाथीके नायक प्रमोदयुक्त होते हैं. एसी यह आराधनानदी हमारी आत्माके अन्तःस्थित कर्ममलके दाहका नाश करे.
या संसारमहाविपापहरणे सन्मंत्रविद्यायते ॥ या कर्मावृतताटषीप्रदहने दावानलोबीयते ॥
-RINi