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________________ आश्वासा लाराधना १८७१ IN सम्यग्वृत्तलसन्महाफलवती भव्यालिशंकारिता ॥ सा वो मानसभूतले प्रसरतादाराधनावल्लरी ।। २२६७ ।। २७ यह आराधना लता शीलरूपी उज्ज्वल पुष्पगंध से सुरम्य दीखती है, धर्मध्यान और शुक्लध्यान रूपी पल्लयोंसे युक्त है, निर्मल सम्यग्दर्शनरूपी बीजसे इसकी उत्पत्ति हुई है, उत्कृष्ट तपरूपी पत्तों से भर गयी है। सम्यक्चारित्र रूपी महाफल इसको उत्पन्न हुए हैं भव्य पुरुषरूपी भ्रमर इस के ऊपर गुंजारव कर रहे हैं. ऐसी यह आराधनारूप वल्ली तुझारे मनोभूमी में खूब प्रसारको प्राप्त होवे. या श्रीमच्छ्रतशीलनीरकस्थिता निर्वाणदानक्षमा । या पुण्याषितारिणी शुचितया रंगत्तरंगाकुला ।। या निर्धूय कलेबराणि महतः संस्थापयेत्सत्सुखे ॥ सा वो मंगलमातनोतु नितरामाराधनास्वधुनी ॥ २२६८॥ २८ यह आराधना रूप गंगा नदी श्रुतज्ञान और शीलरूप पानी से भरी रहती है. निर्वाणमोक्ष देनमें समर्थ है. पुण्यसमुद्रको प्राप्त होती है. दोपरहित है. शुक्ल ध्यानरूपी तरंगोंसे युक्त है. सत्पुरुषों के शरीरका नाच करके जो उनको उत्कृष्ट मोक्ष सुख देती है ऐसी यह आराधनागंगा तुम लोकोंका पूर्ण कल्याण करें. या मोहासुरसंगलञ्चविजया सर्वार्थसंपादनी। शराणामसमाधिनाशनधिया कार्तित्रयाणां सताम् ॥ (2) या दुर्यारमहोपसर्गमधनी सिद्धिप्रियाणां सती॥ सा यः पातु भवादी प्रतिगतानाराधनाध्यविका ॥२२६९॥ २९ यह आराधनारूप अंबिका देवी मोहासुरका पराजय करके विजयी हुई है. इसकी भक्ति करनेवाले पुरुपोको सर्व इष्ट पदाथों की प्राप्ति होती है. यह दवी परोषहसहिष्णु शूर मुनिओंका दुःख नष्ट कर समाधिकी प्राप्ति कर देती है. मुनिओंके उपसर्ग कष्ट नष्ट करके सिद्धिकी प्राप्ति कर देती है. ऐसी यह आराधना देवता संसार चनमें भटकनेवाले हम लोगोंका रक्षण कर या बुद्धयटकचाकमाक्तिकफलमध्यस्थदिङनायकः ।। भास्वबोधविचित्रसूवरचितश्चारित्रसमक्षणः ।।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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