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________________ मूलासपना आश्वासः १८६६ यामासाधावनम्रत्रिदशपतिशिरोघरपादारविन्दाः ।। सद्यः कुंदावदातस्थिरपरमयशाशोधिताशेषविकाः ।। जायंत जतयोऽमी जनज निनमुद केवल ज्ञानभाजो।। भूपादाराधना सा भवभयमधनी भूयस श्रेयसे वः ॥ २२४२ ॥ १० इस की आराधना से भव्यजन इंद्रों के द्वारा पूजे जाते हैं. इस आराधनाके माहास्य से तत्काल भन्यजन कुंदपुष्प के समान अपने यशक द्वारा लोक्य भर देते हैं. इस आराधनाका साहाय्य मिलनेसे भव्योंको आनंदित करनेवाले केवलजानकी उत्पत्ति होती है. ऐसी यह आराधना तुम लोगों को विपुल श्रेयः संपत्ति प्रदान करे. यामाराध्याश गंता शकलितविपदः पंचकल्याणलक्ष्मीम् ।। माप्यां पुण्यैरपापां त्रिभुवनपतिभिर्निर्मितां भक्तिमाद्रिः ।। सम्यक्पवज्ञानष्टिममुग्वगुणमणिभ्राजितां यान्ति मुक्तिं ।। सा वंद्या हृद्यविविलसतु हृदये सर्वदाराधना वः॥ २२५० ।। ११ इस आराधनाकी आराधना से विपत्तिका नाश होता है और देवेंद्र, धरणेद्र और चक्रवर्तिद्वारा भव्य जीवोंको पंचकल्याणकी विभूति प्राप्त होती है. सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र इत्यादि सगुणमणिऑसे अलंकत होकर वे मुक्तीके नाथ.बन जाते हैं. हम अज्ञानी हैं हम इस आराधनादेवीको चंदन करते हैं. यह हमारे हृदय में सर्वदा निवास करे. या सौभाग्यं विधत्तं भवति भवभिधे भक्तित: सेव्यमाना। या छिन्ते मोहदैत्यं भुवनभयभृतां साध्वसं बसयंती। यो चानासाद्य देही भ्रमति भववने भूरिभाषाद्रिरोद्रे॥ सा भद्राराधना वो भवतु भगवती वैभवोद्भावनाय ॥ २२५१ ॥ १२ जो आराधना साभाग्यको उत्पन्न करती है, भक्तीसे इसकी सेवा करनेसे यह संसारका नाश करती है. मोहरूपी दैत्यका विध्वंस करके संसारमें प्राणिओंके भयको दूर भगाती है. इसकी प्राप्ति नहीं होनेपर प्राणी. ऑको नाना प्रकारके कुभावरूप पर्वतों से घिरे हुए संसारजंगलमें भ्रमण करना पड़ता है. अतः यह कल्याण करनेवाली आराधना हमको ऐश्वर्य प्राप्तिमें सहायक बने.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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