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________________ मूलाराधना १८१८ अर्ग- --- एस केवल विनित्रसित होते हैं इस लिये अनेक रंगों से रंगे हुए के समान यह केवलज्ञान है. तीन कालके साथ इस त्रैलोक्यको और अलोकको केवलज्ञान युगपत् देखता है. वीरियमणंतरायं होड़ अतं तव तस्स तदा ॥ कप्पातीदरस महामुणिस्स विग्धम्मि खीणम्मि ।। २१०६ ॥ विजयोदयाचीरियमणंतरायं द्वोदि निर्विघ्नं धोत्रे भवति । क्षायोपशमिकस्य हि वीर्यस्य पुनः श्रीयतरायोये सति विघ्नो भवति तथा तस्य निरषशेषक्षये । अनंतं । कपातीस्स उमस्थकल्पानां अतीतस्य महामुनेर्विशे विनऐ ।। तदनंतर वीर्या विर्भावमभिधत्ते- मूलारा -- अनंतरावं निर्विघ्नं कल्पातील ब्रह्मस्थकल्पनारहितस्य । विग्वम्मि अंतरायकर्मणि । एवंत्रज्ञाना त्रियसाहचर्यातत्रानंतर सुखाधिगमो भवति । इति चदनिर्देशः । अर्थ - केवलज्ञानको उत्पत्ति होनेसे आत्मामें जो सामर्थ्य उत्पन्न होता है वह अंतराय - विघ्न-रहित होता है. क्षायोपशमिक शक्ति वीर्यावराय कर्म के उदय से विघ्नयुक्त होती है. सम्पूर्ण वीर्यांत रायकर्मकाही केवल ज्ञानके समय नाश होनेसे प्राप्त हुए अनन्त शक्तिको बाधित करनेवाला पदार्थ ही नहीं रहा है. अतः वह शक्तिगुण अनन्त हुआ है. तो सो वेदयमाणो विहरइ सेसाणि ताव कम्माणि || जावसमन्त्ती वेदिज्जमानयस्ता उगस्त भवे ॥ २१०७ ॥ ततो वेदयमानोऽसौ शेषाघातिचतुथ्र्यम् ॥ कुर्वाणो जनतानंद भ्रमत्येष सुरार्चितः ॥ २१८० ॥ विजयोदया तो सो वेदयमाणो केवलहानादिपरिमाप्त्यनंतर कालं वेदयमानो विहरति, सेसाणि ताव कम्माणि अवशिष्टानि तावत्कर्माणि । जावसमती यावत्परिसमाप्तिः । वेदिज्जमानयस्स आउगस्स भवे अनुभूयमानस्य मनुष्यायुषो भवेत् ॥ आवा ८ १८१०
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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