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________________ मूलाराधना आश्वासः १८.८ और मन तथा श्वासोच्छ्वासकी सूक्ष्म प्रवृति होती है. पुनः पुनः निद्रा जब आती है. तब उसको निद्रानिद्रा कहते हैं. अर्थात् निद्रानिद्रा नामक दर्शनावरण कर्मके उदय से वह कष्टसे जागृतावस्था उत्पन्न होती है. परन्तु निद्र। जल्दी खुलती है. बैंठ हुए मनुष्य के अंगमें, नेत्रों में जो विक्रिया उत्पन्न होती है उसको प्रचला कहते हैं. यह अवस्था प्रचलादर्शनावरण कर्मके उदयसे होती है. ऐसी अवस्था पुनः पुनः उत्पन्न होना उसको प्रचला प्रचला कहते हैं. यह अवस्था प्रचलाप्रचला दर्शनावरण कर्मोदगसे होती है. निद्रामें जिसके उदयसे वीयविशेष प्रगट होता है उस कर्मको स्त्यानाद्ध दर्शनावरण कर्म कहते हैं. इसके उदयसे रौद्रकम आत्मा करता है निद्रादेरूप परिणति जो होती है, उसका भाव निद्रा, भाव प्रचल वगैरे कहते हैं. और निद्रादि कर्मोको जो उदय है वह पहल दृव्यकी विशेष अवस्था है. - णिरयगदियाणुब्धि णिरयगदि थावरं च सहमं च ।। साधारणादवुज्जोत्रतिरयगदि आणुपुबीए ॥ २०९५ ॥ स्थावरं नारकद पोडश प्रकृतीरिमाः॥ प्लोषते प्रथम तत्र शुक्लध्यानकृशानुना ।। २१६८।। विजयोदया-गिरयगदिवाणुपुचि नरकगत्यानुपूर्षि, नरकगति, स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, भातपं, उद्योत तिर्यमास्यानुपूर्वि ॥ मूला--गिरयदि आणुपुचि यदुननादात्मा भातरं गच्छति सा गतिः । नरकस्य गतिनेरकातिरत्मनो नारकभावनिमित्तं नामकर्मविशेषः । पूर्वशरीराकाराविनाशो अस्योदयाद्भवति तदानुखियं नाम । अगत्यूपेशरीराकार अविनाश्य जीवेन सह नरकादियावदेव बोलापकवद्गति तन्नर कादिरातिप्रायोग्यानुयूादिभेदारपतुधि, तन्मध्यान नरकगतिमायोग्यापूर्वी अपयतीति संबंधः । थावर स्थावरारूपं जीवम्यकेंद्रियेषु प्रादुर्भावकार नागकर्म । मुहुमं सूक्ष्मसंझं परानुपघातकसूक्ष्मशरीरनिर्वतकं नामकर्म । साधार बहूनामात्मनां प्रपभोगतत्वेन साधारण शरीरं चतो भवति सत्साधारणशरीरनाम । आदव यदुदयादातपनं निप्पद्यते तदानप नाम तच्च प्रामोदयमादित्ने वर्तते ॥ जोबो-जयोतननिमित्तमुद्योतमाग्न लवंद्र क्योतादिषु सफलोभिव्यक्तं वर्तते ॥ तिरियगदि आणुपुब्बीओ तिर्यातिप्रायोग्यानुपूर्व्य॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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