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________________ डावास राधना Porn. प्रायोपगमन मरणका वर्णन-- अर्थ--इंगिणीमरणका जो सविस्तर विधि कहा है वही प्रायोपगमन मरणका भी विधि समझना चाहिए. णवरि तणसंथारो पाओवगदस्स होदि पडिसिद्धो ॥ आदपरपओगेण य पडिसिद्ध सब्बपरियम्म ।। २०६४ ॥ संस्तरः क्रियते नान तृणकाष्ठादिनिर्मितः ॥ . स्वकीयमन्यपि य चैयाकृत्यं न विद्यते ।। २१३६ ॥ विजयोत्या-वरि सणसंधारो णवरं संस्तरः प्रायोपगमनगतस्य प्रतिषियः, आत्मपरप्रयोगण यस्मात्र तिषिद्धः सर्पः प्रतीकारः । स्थपरसंपाचप्रतीकारापेक्षा भक्तमस्यास्पानाविधिः, परनिरपेक्षमात्मसंपाचप्रतीकारामिगिणीमरणं, सर्वप्रटीकाररहितं प्रायोपममनमित्यमीषां भेदः । उत्सर्गेणोपदिश्यापवादमाह मूलारा-पवरिं किंतु । पाओवगवस्स संघात्पादाम्यां योग्यवेशमुपगम्य गृहीतसन्न्यासे सतीत्यर्थः । डिसियो निषिद्धः । आदेत्यादि सर्वप्रतीकाररहितमिदमित्यर्थः । एतेन भक्तप्रतिशगिणीभ्यामस्य भेवो वयते ॥ अर्थ-इस प्रायोपगमनमरणमें तृणके संस्तरका निषेध है. क्योंकि यह प्रायोपगमन करनेवाले मुनि स्वतः और परतः शुश्रूषा नहीं करते हैं. स्वयं भी अपनी शुश्रूषा नहीं करते हैं और दूसरोंको भी शुश्रूषा नहीं करने देते हैं. भक्तप्रत्याख्यान विधीमें स्वपरशुश्रूषा विधिकी अपेक्षा है. इंगिनी मरणमें परशुश्रूषाका निषेध है, परंतु स्वयं अपनी शुश्रूषा करते है. ऐसा इन तनि मरणों में आपस में भेद हैं.. सो सल्लेहिददेहो जम्हा पाओवगमणमुवजादि । उच्चारादिविकिंचणमवि पत्थि पवोगदो तम्हा ॥ २०६५ ॥ करोत्येनं ततो योगी कृतसल्लेखनाविधिः ॥ उच्चारनम्रबादीनां ततो नास्ति निराकिया ।। २१३७ ॥ १७९१
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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