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________________ आश्वासः राधना साधुनां स्थितिकल्पोऽयं च वासानुबंधयोः ।। समस. साधुभिनायधिमा अन्ये सु वासे वासे इति पाठित्वा वर्षे वर्षे इत्यर्थं व्याचक्रुः । अपरे मासे मासे इति पार्ट मत्वा एवशएं विकल्पार्थगीपुः । तथा चोक्तम् श्रवणानां स्थितिफल्यो मासे मास लधर्तुबंधे या ।। प्रतिलख्येपा नियंत निषधका सबभंग भिभिः ॥ यरमाशिष यादर्शन काळनयत्येन सूत्रे साधूनामवश्यकर्तव्यतयोपदिष्टं तस्मात्रिपद्या विधानाय मुमुक्षुभिःस्वयं प्रय तितव्यमिति भावः ॥ अर्थ-चातुर्मासिक योगको प्रारंभकालमें तथा प्रारंभ में जहां आराधकके शरीर का स्थापन किया है उस स्थानकी प्रति लखना सर्व साधुओं को नियमसे करनी चाहिये. अर्थात् उस स्थानका दर्शन करना चाहिय, पोछीसे उसको स्वच्छ करना चाहिये. ऐसा यह मुनिका स्थित कल्प है. तस्या रक्षणाच एगता सालोगा णादिविक्रिका ण चावि आसपणा ॥ वित्थिपणा बिद्धता णिसीहिया दूरमागाढा ॥ १९६८ ॥ निषद्या नातिदूरस्था विविक्ता प्रासुका घना ।। कर्तव्यास्ति परागम्या बालवृद्धगणोचिता ॥ २०४६॥ विजयोदया-गता सालोगा एकांता पर प्रायेणारया नातिदूरा माल्यासना विस्तीणी विश्वस्ता दरमय - गांधा। कि लागषा निषद्या स्यादित्यत्राह --- मला-पता एकानप्रदेशम्या । सालोगा भाकाहा । दिविया नाशिदूर। नगराधपेक्षया । ण वादियामा नायगास्ना वित्थिा वियुला । विद्धत्या प्रानुका । दूरमोगाढा अनिस्टा । उन च निषद्या नातिदूरस्था विविका प्रासुका धना। कर्तव्यास्ति परागम्या बालवृद्धगणोचिता ।। २७३६
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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