SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1722
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलाराधना आचामा उत्कृष्टाराधनाफलं गाथाचतुष्टयेन ध्याचष्टेमूलारा- अधावादविधि यथाख्यातचारित्रम् । केई चरमदेवाः ॥ श्रावरण ज्ञानदर्शनावरणे द्वे ॥ अर्थ-जिन्होने यथाख्यात चारित्रको प्राप्त किया है, निर्मल सम्यग्दर्शन चारित्रको जो प्राप्त हुए हैं क्षपक घातिकमाका नाश करते हैं. १७११ केवलकप्पं लोगं संपुष्णं दवपज्जयविधीहि ।। ट्झायंता एयमणा जहंति आराया देहं ॥ १९२७ ।। त्यजत्याराधका देहं ध्यायन्लो भुवनत्रयम् ॥ द्रव्यपर्यायसंपूर्ण केवलालोकलोकितम् ।। २००९ ॥ विजयोदया केवलकप्य कवलनानस्य परिच्छचत्धे या लोकं संपूर्ण द्रव्यपर्यायविकल्पैः परिच्छिदंतः जद्दति ते स्वदेहे ॥ पर्व जीवन्मुक्तिमनंतचतुष्टयात्मिकामुत्कृष्धाराधनाफलमुक्त्वा परममुक्किमपि तत्कलरवेनाह मूलारा- केवलकाप केवलज्ञानस्य परिकलेयत्वेन योग्यं । बिधीहि भेदै ।। ज्झायंता जानतः । एयमणा विशुद्धस्थिरमानाः । तो पश्चात् स्वायुःक्षयानसरमित्यर्थः। सयं निज । . अर्थ--केवलज्ञान के द्वारा जानने योग्य जगतको संपूर्ण द्रव्यपर्याभों के विकल्पोंके साथ जानते हुए वे क्षपक आराधक अपना देह छोड़ देते है. सवुकसं जोगं जुजता दंसणे चरित्ते य ॥ कम्मरयविप्पमुक्का हवंति आराधया सिद्धा ॥ १९२८ ॥ रत्नत्रयकटारेण छिस्वा संसारकाननं ॥ भवंति सहसा सिद्धा सुरासुरवंदिताः ॥ २०१० ॥ १७
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy