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________________ मूलाराधना १६९५ होता हैं. युद्ध में कवचरहित पुरुषका बाणादिकोंके महारसे रक्षण नहीं हो सकता है वैसे ध्यानसहित मुनि कपायशत्रु से अपना रक्षण नहीं कर सकते हैं. यष्टिरुप ज्झाणं करेइ स्ववयस्तोभं विहीणचेस ॥ थेररस जहा जंतरस कुणदि जट्टी उभं ॥ १८९४ ॥ ध्यानं करोत्यवष्टम्भं क्षीणचेष्टस्य योगिनः ॥ दंडः प्रवर्तमानस्य स्थविरस्येव पावनः || १२५८ ।। विजयोदया-झा करेदि ध्यानं करोति क्षत्रकस्योपष्टमं दीनवेष्टस्य स्थविरस्य गन्छतो यथा करोति ध्यानस्य बढदायित्वं गाथाद्वयेन सहान्तं स्फुटयति- मूलारा -- उभं कायनिये बलावानं । विद्दणखेडुरस मनोवाक्कायैश्वारित्रं साधयितुमशक्तत्व | अर्थ --- जैसे निर्बल को गमन करते समय लाठी मदत करती है वैसे मन वचन और शरीर से चारित्र साधने में असमर्थ मुनिको ध्यान मदत करता है. मल्लस हाणं व कुणई खवयस्स दढबलं झाणं || झाणविहीणी खवओ रंगे व अपोसिवो मल्लो ।। १८९५ ।। पलं ध्यानं यत्ते मल्लस्येव घृतादिकम् ॥ समोऽपुष्टेन मल्लेन ध्यानहीनो यनिर्मितः ॥ १९५९ ।। विजयोदय-मलस्स पार्थ व महस्य स्नेहपानमिव क्षपकस्य ध्यानं करोति, प्यानहीनः क्षपको रंगे अपोषितो मल देव न प्रतिपक्ष जयति ।। मृलाश-- रंगे वाढयुद्धोपक्रमे ॥ अर्थ- दूध, घी वगैरह स्नेहयुक्त पदार्थ खानेसे मल्ल जैसे पुढं होता है और बाहुयुद्ध में अपने प्रति आश्वास १६९५
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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