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मूलाराधना
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होता हैं. युद्ध में कवचरहित पुरुषका बाणादिकोंके महारसे रक्षण नहीं हो सकता है वैसे ध्यानसहित मुनि कपायशत्रु से अपना रक्षण नहीं कर सकते हैं.
यष्टिरुप
ज्झाणं करेइ स्ववयस्तोभं विहीणचेस ॥
थेररस जहा जंतरस कुणदि जट्टी उभं ॥ १८९४ ॥ ध्यानं करोत्यवष्टम्भं क्षीणचेष्टस्य योगिनः ॥
दंडः प्रवर्तमानस्य स्थविरस्येव पावनः || १२५८ ।।
विजयोदया-झा करेदि ध्यानं करोति क्षत्रकस्योपष्टमं दीनवेष्टस्य स्थविरस्य गन्छतो यथा करोति
ध्यानस्य बढदायित्वं गाथाद्वयेन सहान्तं स्फुटयति-
मूलारा -- उभं कायनिये बलावानं । विद्दणखेडुरस मनोवाक्कायैश्वारित्रं साधयितुमशक्तत्व | अर्थ --- जैसे निर्बल को गमन करते समय लाठी मदत करती है वैसे मन वचन और शरीर से चारित्र साधने में असमर्थ मुनिको ध्यान मदत करता है.
मल्लस हाणं व कुणई खवयस्स दढबलं झाणं ||
झाणविहीणी खवओ रंगे व अपोसिवो मल्लो ।। १८९५ ।। पलं ध्यानं यत्ते मल्लस्येव घृतादिकम् ॥
समोऽपुष्टेन मल्लेन ध्यानहीनो यनिर्मितः ॥ १९५९ ।।
विजयोदय-मलस्स पार्थ व महस्य स्नेहपानमिव क्षपकस्य ध्यानं करोति, प्यानहीनः क्षपको रंगे अपोषितो मल देव न प्रतिपक्ष जयति ।। मृलाश-- रंगे वाढयुद्धोपक्रमे ॥
अर्थ- दूध, घी वगैरह स्नेहयुक्त पदार्थ खानेसे मल्ल जैसे पुढं होता है और बाहुयुद्ध में अपने प्रति
आश्वास
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