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मूलाराधना
आश्वासा
प्रकृते योजयन्नुपसहरतिमूलारा-समस्सिको समाभितः । गुणसेलुि उपांतकषायादिकां ।।
अर्थ--इस प्रकार यह यह क्षपक एकाग्रचित्त होकर उपशांत करायादि गुणस्थानोपर क्रमसे आरोहण करता हुआ सम्परछानके आश्रयसे बहुत कमोंकी निर्जरा करता है.
ध्यानमहात्म्यस्तवनाथ उत्तरप्रबंधः ॥
मनिम नि किजिद विद्वान हाणाम्बरविहूण ॥ झाणेण संबुडप्पा जिणदि अहोरत्तमत्तेण ॥ १८५१ ॥ तपस्यवस्थितं चित्रं चिर नियानसंवरम् ।।
ध्यानेन संवृतःक्षिप जयति क्षपकः स्फुटम् ॥ १९५५ ।। बिजयोदया–सुचिरमवि संकिलिलु घिरत पूर्वकोटिकालं देशोनं क्लेशसहितचारियोचतं माणसंवरविण ध्यानाल्यन संवरेण विहीन । जिणदि जयति । कः माहोरत्तमेतण झाणेण संयुद्धप्पा अहोरात्रमात्रेण ध्यानेन संवृतात्मा।
ध्यानमाहात्म्य प्रबंधेग स्तोनुमाइ
मूलारा-सुपिरमवि देशोनपूर्वकोटिकालमपि । मकिलिलु विडूनं । क्लेशसहितचारित्रोद्यत । मुमुक्षु मनुटुप्पा संवृतचितो मुमुक्षुः । मिणदि ग्यकरोति ।।
ध्यानमाहात्म्यकी स्तुति करने के लिये उत्तर प्रबंध--
अर्थ-- कुछ कम कोटि पर्व वर्षतफ क्लेशसहित चारित्र धारण करनेवाला मुमक्ष मुनि ध्यानरूपसंवरसे रहित है इस लिये रातदिन भ्यानसे जिनका आत्मा एकाग्र हुआ है उनको नवीन कर्मका संवर होता है. ऐसे मुनि संचररहित मुनिकी अपेक्षा श्रेष्ठ हैं.
एवं कसायजुद्धमि हवदि खवयस्स आउधं झाणं ॥ ज्झाणविहणो खवओ जुद्धेव णिराबुधो होदि ॥ १८९२ ॥