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________________ मूलाराधना आश्वास १५४७ | आपसमें उपयुक्त पाणी लडते हैं और भक्षण करते हैं ऐसा देखकर जो दया उत्पन्न होती हैं उसको सर्वानुकंपा कहते हैं. सूक्ष्म कुंथु, चींटी. वगैरह प्राणी, मनुष्य, ऊंट, गधा, शरभ, हाथी घोडा इत्यादिकोके द्वारा मर्दित किये जा रहे हैं ऐसा देखकर दया करना चाहिये. असाध्य रोगरूपी सर्पसे काटे जानेसे जो दुःखी हुए हैं. में भर रहा है, मेरा नाश हुआ, हे जनहो दौडो ऐसा जो दुःखसे शब्द करते हैं उनके ऊपर दया करनी चाहिय. पुत्र कलत्र- पत्नी वगैहरसे जिनका नियोग हुआ है. जो रोग पीडासे शोक कर रहे हैं. अपना मस्तक बगैरह अवयव जो बदनासे पीटते हैं. कमाया हुआ धन न होनेसे जिनको शोक दुआ है. जिनके बांधव छोडकर चले गये हैं, जो धैर्य, शिल्प, विद्या, व्यवसाय इत्यादिकोंसे रहित हैं उनको देखकर अपनको इनका दुःख हो रहा है ऐसा मानकर उन प्राणिऑको स्वस्थ करना उनकी पीड़ाका उपशम करना यह सानुकंपा है. यह मनुज जन्म अतिश्य दुर्लभ है. सज्जनो! इसकी प्राप्ति आपको हुई है इस वास्ते अकृत्य करके आप दुःखके पात्र मत बनो. कल्याण कारक शुभ ऐसे सत्य धर्ममें दृढ रहनेका आप प्रयत्न करो. इस प्रकारका उपदेश देना चाहिये. जो प्राणि ऑपर दया करते हैं उनको इसने मेरे ऊपर उपकार किया है. यह मेरे ऊपर उपकार करेगा ऐसी आशा करना योग्य नहीं है. इस प्रकार प्राणिऑपर तीन प्रकारकी दया की जाती है. इस दयासे जो पुण्य संचित होता है उसस स्वगर्म जन्म होता है. अब शुद्ध प्रयोगका निरूपण करते हैं- यतिका शुद्धपयोग और गृहस्थोंका शुद्ध प्रयोग ऐसे इसके दोन भेद है. यतिके शुद्धग्रयोगका वर्णन इस प्रकार है'मैं जीवोंको नहीं मारूंगा, असत्य भाषण नहीं बोलूंगा, और घौर्य नहीं करूंगा, भोगोंका उपभोग मैं नहीं करूंगा. धनका सेवन नहीं करूंगा और शरीरको अतिशय का होनेपर भी सतमें भोजन नहीं करूंगा, क्रोध, मान, माया और लोभसे बह दुःख देनेवाले आरंभ परिग्रहीका सेवन नहीं करूंगा, मुनिदाक्षा धारण कर ऐसा कर्म करना मेरे लिये अत्यंत अयोग्य है. - जम जिसने अपने किरीटपर माला धारण की है, हाथमें धनुष्य और याण धारण किये हैं ऐसा राजाके सहश मनुष्य यदि भीख मांगगा तो उसके लिये यह भीख मांगना बिलकुल योग्य नहीं है. वैसे मैं भी दीक्षा लज्जाको छोडकर आरंभ परिग्रहादिक कार्य करूंगा तो क्या वह मेरेलिए योग्य होगा? कदापि नहीं. मैंने पूज्य १६४७
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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