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________________ मूलाराधना आश्वासः गलारा-केण वक्राख्येन स्वशिष्येण । मारिदो विमलानाम्न्या बिभायया सह मैथुनं कुर्वाणो इत: 1 भारिया भार्या । जादिभरो जातिस्मर जातः । सुदिट्ठी सुदृष्टिनामनगरवैज्ञानिकः अर्थ-विमला नामक स्त्रीके वश होकर वक्र नामक पुरुपने अपने स्वामीका वध किया. वह स्वामी उसही स्त्रीके उदरमें कर्मादयसे गर्भ रूप होकर उसका पुत्र होकर उत्पन्न हुआ. उसका मुरष्टि नाम रक्खा गया. उसको कालोतरसे जातिस्मरण हो गया तब मैं अपनी खीमें ही पुत्र उत्पन्न हुआ हूं ऐसा उसको ज्ञान होगया. BREAKIKATARASATAR होऊण बंभणो सोत्तिओ खु पावं करितु माणेण || सुणगो व मूगगे वा पाणो वा होइ परलोए ॥ १८०७ ॥ श्रोत्रियो बामणो भूत्वा कृत्वा मानेन पातकम् ।। सूकरो मंडलः पाणो शृगालो जायते यकः ॥ १८७८ ।। विजयोदया-होऊण बभपो सोलिओ श्रोत्रियो माझी भूरबा भावजातिमदेन । गुणिजनांनदावमानायां पापं करि पाप कृत्वा नीचे गाँधमुपचित्य । सुणगोय सूमरो घा पाणो वा होनि परलोए श्वा शूकरचाण्डालो वा भवति पर जन्मनि ॥ __ मूलारा--मापोण जातिमदेन । गुगिजननिंदावमानाभ्यां नीवैर्गोत्रमुपाय शुनकादिर्भवतीति संबन्धः ।। अर्थ-यह जीव श्रोत्रिय ब्रामण होकर जातिमदसे गुणिजनोंका अपमान करता है, निंदाकरता है. इस कार्यसे पापसंचय करके अर्थात नीच गोत्र कर्मका पंच करके परभवमें कुत्ता, अथवा सुबर किंवा चांडाल होता है. दारिई अद्वित्तं जिंदं च थुदिं च वसणमन्भुदये ॥ पावदि बहुसो जीवो पुरिसिस्थिणवुसयत्तं च ॥ १८१८ ॥ निदा दारिद्रयमैश्वर्य पूजामभ्युदयं स्तुतिम् ।। स्त्रैण पौंस्नं चिरंजीवः षंढत्वं प्रतिपद्यते ॥ १८७९ ॥ __ बिजोदया-दारिह वारियं । बटुसो जीवो पावदि यहुशः जीवः प्रमोति लाभांतरायोदयात् । अदितं आव्यता पूर्वपदेव संबंधः पावदि बहुसो इमो इत्यनेन । लाभांतरायक्षयोपशमावीप्सितानि दन्याणि लभते, लब्धानि च नश्यति ॥ १६२५
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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