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________________ मूलाराधना आश्वासा विमल आकाशस्थित सूर्यके समान दश दिशाओंको प्रकाशित करते हैं. तथा चंद्रके समान अपनी सौम्य कांतीसे दश दिशाओंको सौम्ययुक्त बनाते हैं । १. अतिशय लघु होकर वे अतिशय दूर जाते हैं. और गुरु होकर चे पर्वतके ममान विशाल बनते हैं. जलके समान होकर पृथ्व में प्रवेश करते हैं और पृथ्वी के समान अन्य पदार्थों का रोध करते हैं । १२ लकडी. अग्नि, हवा, पानी, पृथ्वी इनमें और पाणिऑके शरीर में ये प्रवेश करनेमें समर्थ होते हैं. उनके मुणके समान गुण और प्राणिऑके नहीं होते हैं. और चे समर्थ होते हैं। १३ वे देव अग्नि, पर्वत, जंगल, समुद्र वगैरहको एकदम उलंघकर बिना परिश्रमके इच्छित स्थानपर पोहोन जाते हैं. सिद्धके समान उनको किमी पदार्थ से बाधा नहीं पोहोचती हैं. २४ उनमें पर्वताको जमीनपर गिरा देनेका सामध्ये होता है. वे मंदर पर्वतोंको भी गिरा सकते हैं. जमीनपर ठहर कर भी मंदर पर्वतक शिखरको स्पर्श कर सकते हैं. १५ देव और मनुष्यॉपर विना प्रयत्नसे वे ईशव रख सकते है. और सर्व पशुओंको वश करते हैं. मनमें वे जिस रूपको चाहते हैं तत्काल उसको धारण कर सकते हैं. वे जिस पदार्थको बाहते हैं तत्काल उसको प्राप्त कर सकते हैं। १६ अपने शरीरकी सुगंधसे संपूर्ण दिशाओंको भर देते हैं. उनके गले में संतानकादि कल्पवृक्षोंके पुष्पोंकी आम्लान माला रहती है। १७ पुष्प, गंघोंसे सुगंधित वन वे धारण करने हैं. और संभोगमें प्रवीण देवांगनाओंके साथ वे हमेशा रतिक्रीडा करते है। १८ वे महान ऋद्धिधारक देव और देवांगना विषमायुष्य होनेसे वियोग दुःखको प्राप्त होते हैं. अर्थात् देवको देवीका और देवीको देवका वियोग होता है। १९. इस मध्यमलोकमें प्राणिओंको तीव्रतर तीव्रतम वगैरह विकल्पोंके क्रोधादि कषाय उत्पन्न होते हैं. परंतु देवलोकमें कषायोंका तीव्रभाव नहीं रहता है. २० अच्युत स्वर्गतक देवांमनाका दीर्घकाल आयुष्य यद्यपि है तो भी वह पल्यप्रमाण ही है अर्थात्
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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